महंगाई, बेरोजगारी, पेंशन और जातीय मतगणना मुद्दा

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

देश में जिस गति से महंगाई बढ़ी है क्या उस गति से लोगों की आय में इजाफा हुआ है। जिस गति से बेरोजगारी बढ़ती जा रही है उस गति से रोजगारों का सृजन हो पाया है। जिस तरह से पुरानी पेंशन के मुद्दे को लेकर राज्य और केन्द्र के कर्मचारी लगातार आन्दोलन कर रहे है उस पर सरकार कोई कदम उठा रही है। अब जब जातीय जनगणना का मुद्दा लेकर विपक्षी दल सड़क और सदन पर आ रहा तो सरकार ने इससे निपटने के कोई ठोस प्रयास किये है।

 ऐसे कई और जनता से जुड़े मुद्दे है जिन पर सरकार शायद गहन मंथन नही कर पा रही है। वैसे तो सरकार ने विपक्ष को धराशायी करने में कोई कसर नही छोड़ी लेकिन महंगाई, बेरोजगारी, पेंशन जैसे मुद्दे और अब जातीय मतगणना का मामला आगामी लोकसभा चुनाव में गहरा जाएगा। हालांकि बीच बीच में विपक्षी दलों की रंग बदलने की आदत का फायदा सरकार को उठाना ही है इसका खमियाजा आमजनता को भुगतना पड़ेगा। इसके बावजूद विपक्षी दल आगामी लोकसभा चुनाव में इन चार मुद्दों को लेकर सामने आएगें। केन्द्र और राज्य का कर्मचारी पुरानी पेंशन को लेकर केन्द्र और राज्य सरकार के रूख से नाराज है।

बहरहाल हम सबसे पहले देख ले कि कोराना काल के बाद महंगाई का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। कोराना काल में लिया गया कर्ज अब तक आम आदमी चुका नही पाया। सांख्यिकी और कार्यक्रम मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत की खुदरा मुद्रास्फीति, जिसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) द्वारा मापा जाता है, जून 2023 में तीन महीने के उच्चतम स्तर 4.81% पर पहुंच गई, जो इस साल मई में 4.25% थी। कार्यान्वयन। सीपीआई अप्रैल 2022 में उच्चतम 7.79% और जनवरी 2021 में सबसे कम 4.06% पर पहुंच गई।

 दूसरी ओर, थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर मुद्रास्फीति डेटा, जो खुदरा कीमतों पर बेचने से पहले वस्तुओं की कुल कीमतों की गणना करता है, जून 2023 में 4.12% है, जो इस साल मई में 3.48% था। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन श्रेणियों में बार-बार मूल्य परिवर्तन होता है, उनमें घरेलू उत्पाद, फूड और लिनेन (कपड़े) शामिल हैं।

 इसके अलावा इनमें मोटर वाहन से संबंधित उत्पाद, मोबाइल फोन और बिजली शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 18 जुलाई से माल और सेवा कर (जीएसटी) परिषद द्वारा दरों में वृद्धि को मंजूरी देने के कारण खुदरा महंगाई बढ़ सकती है। कुछ पर टैक्स छूट वापस लेने के साथ कई वस्तुओं पर जीएसटी दरों में वृद्धि का अतिरिक्त प्रभाव खुदरा महंगाई पर पड़ सकता है। इधर बेरोजगारी का हाल बेहाल है। 

केंद्रीय ऑफ मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत की बेरोजगारी दर मार्च 2023 में 7.8% हो गई है। यह फरवरी में दर्ज की गई 7.2% बेरोजगारी दर से बढ़त है और कोविड-19 महामारी के बाद अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए देश के प्रयासों के लिए एक विफलता का प्रतीक है।

भारत के श्रम बाजार को सामान्य रूप से उत्पादन और सेवा क्षेत्रों में विशेष रूप से औपचारिक नौकरियों की कमी से जूझना पड़ रहा है। कई श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार करते हैं, जिसमें कम वेतन, खराब काम के शर्तें और थोड़ी सी नौकरी सुरक्षा होती है। इससे श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा और लाभ तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है और इससे आर्थिक असुरक्षा और गरीबी का भी योगदान हो सकता है।भारत के श्रम बाजार को सामान्य रूप से उत्पादन और सेवा क्षेत्रों में विशेष रूप से औपचारिक नौकरियों की कमी से जूझना पड़ रहा है। 

कई श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार करते हैं, जिसमें कम वेतन, खराब काम के शर्तें और थोड़ी सी नौकरी सुरक्षा होती है। इससे श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा और लाभ तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है और इससे आर्थिक असुरक्षा और गरीबी का भी योगदान हो सकता है। पुरानी पेंशन को लेकर केन्द्र एवं राज्य कर्मचारी गदर काटे है। 

उनके आन्दोलन और प्रदर्शन से जनता के साथ देश का विकास भी प्रभावित हो रहा है लेकिन केन्द्र सरकार और भाजपा शासित राज्य सरकार ने पुरानी पेंशन के मामले में अपना मत स्प्ष्ट कर दिया है। ऐसे में आने वाले समय में केन्द्र और राज्य कार्मिकों के सैकड़ों संगठन लोकसभा चुनाव तक इसी तरह आन्दोलन रत दिखाई पड़ेगे।

ज्ञात हो कि अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 2003 में पुरानी पेंशन योजना को खत्म कर दिया था और सत्ता से बाहर होने से ठीक एक महीने पहले 1 अप्रैल 2004 को मौजूदा राष्ट्रीय पेंशन योजना शुरू की थी। तब से अब तक कई पर सरकार कह चुकी है कि पुरानी पेंशन लागू करने का कोई विचार नही है।

 आजकल ओल्ड पेंशन स्कीम और नेशनल पेंशन सिस्टम की पुरजोर चर्चा चल रही है। यूपी विधानसभा चुनाव में ओपीएस को मुद्दा बनाया गया था। समाजवादी पार्टी ने इस मुद्दे को मुखरता से उठाया और जनता को भरोसा दिलाया कि उनकी सरकार आई तो पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू किया जाएगा। लेकिन समाजवादी पार्टी की सरकार नहीं आई. इसके बावजूद ओपीएस का मुद्दा गर्म है। 

अलग-अलग क्षेत्रों के कर्मचारी इसे फिर से बहाल करने की मांग कर रहे हैं। वैसे तो देश के कई राज्यों ने ओपीएस को लागू कर दिया है जिनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड,हिमाचल प्रदेश के नाम हैं। वैसे तो कई बार सवाल उठा कि क्या सरकार एनपीएस को खत्म कर ओपीएस को लागू करने वाली है ? यह सवाल संसद में उठा। इस पर सरकार ने स्पष्ट किया कि एनपीएस को बंद कर ओपीएस लागू करने का विचार नहीं है।

इसके अलावा देश की राजनीति में इस समय जातिगत जनगणना का मुद्दा छाया हुआ है। कांग्रेस, जदयू, राजद, एनसीपी, द्रमुक और आम आदमी पार्टी समेत कई विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार से जाति आधारित जनगणना कराने की मांग की है। कोविड-19 महामारी के कारण नियमित जनगणना में देरी होने के कारण जातिगत जनगणना की नए सिरे से मांग की जा रही है। 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी कर्नाटक रैलियों में दो दिनों में दूसरी बार जातिगत जनगणना की मांग की है। जातिगत जनगणना के समर्थक इसे समय की जरूरत बताते हैं, जबकि केंद्र की इस मामले पर अलग राय है। बहरहाल इन सब मुद्दों पर केन्द्र और भाजपा शासित राज्यों का लगभग एक जैसा जबाब है। ऐसी स्थिति में आने वाले लोकसभा चुनाव में अगर केन्द्र सरकार को इन मुद्दों को लेकर जनता के विरोध का सामना करना पड़े तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी।