ब्रिक्स का बढ़ता कारवा और भारत

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

ब्रिक्स में शामिल पांचों देश दुनिया की लगभग 40 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालाकि चीन इसे अपने हित के लिए इस्तेमाल करना चाहता है। जबकि भारत इसे सही मायनों में लोकतांत्रिक संगठन बनाना चाहता है। दक्षिण अफ्रीका में जो ब्रिक्स का समिट हुआ, वह काफी सफल रहा है। भारत हमेशा से ही इसके विस्तार की बात करता रहा है। 

इसके लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई बार कह चुके है कि भारत विस्तार के विरोध में नहीं है। भारत सिर्फ ये चाहता है कि विस्तार से जुड़े हर पहलू पर सदस्य देशों के बीच विचारों का आदान-प्रदान हो और सहमति बनने से पहले सबकी चिंताओं और कूटनीतिक पहलुओं को महत्व दिया जाए। ब्रिक्स के सदस्य विस्तार के मानकों, मानदंडों और प्रक्रियाओं के साथ ही मार्गदर्शक सिद्धांतों को निर्धारित करने के लिए आपस में अलग-अलग तरीकों से बात कर रहे हैं। 

विस्तार से कई पहलू जुड़े हैं। भारत का फोकस इस पर है। भारत का कहना है कि जो मौजूदा सदस्य है, उनके बीच के आपसी सहयोग को भी विस्तार के बारे में कोई भी सिद्धांत बनाने में सोचना होगा। एक और महत्वपूर्ण मुद्दा है. इस समूह के देशों का गैर ब्रिक्स देशों को लेकर कैसा रवैया रहा है या जुड़ाव रहा है। ब्रिक्स के संभावित विस्तार के प्रारूप में किसी देश के निजी हितों को प्राथमिकता न मिले, भारत का मुख्य जोर इस पर है।

 भारत बस यहीं चाहता है कि विस्तार में किसी भी देश का व्यक्तिगत एजेंडा स्वीकार नहीं किया जाएगा और भारत की इस मंशा से विदेश मंत्री एस जयशंकर पहले ही सदस्य देशों को अवगत करा चुके हैं। उस वक्त भारत के पक्ष का समर्थन करते हुए मेजबान दक्षिण अफ्रीका ने भी स्पष्ट किया था कि विस्तार को लेकर जब तक कोई उपयोगी दस्तावेज या प्रक्रिया पर सर्वसम्मति नहीं बन जाती है। 

 तब तक इस दिशा में आगे नहीं बढ़ जाएगा। जून में विदेश मंत्रियों की बैठक में दक्षिण अफ्रीका ने कहा भी था कि सालाना शिखर सम्मेलन तक विस्तार से जुड़ी कोई प्रक्रिया या नीति तैयार हो जाती है, तो फिर उस पर विचार किया जाएगा। इस मसले पर ब्राजील भी भारत की बातों का पुरजोर समर्थन करते आया है। ब्राजील के विदेश मंत्री मौरो विएरा कह चुके हैं कि ब्रिक्स ब्रांड बन चुका है और ये सदस्य देशों की एक बड़ी संपत्ति है। इस वजह से ब्राजील भी चाहता है कि संभावित विस्तार में इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए।

 विस्तार में किसी खास देश के सिर्फ इस वजह से शामिल नहीं किया जाए कि उस देश के साथ रूस या चीन के संबंध कितने गहरे हैं। भारत के साथ ही दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील के लिए ये बड़ा मुद्दा है। हालियॉ सम्पन्न ब्रिक्स देशों के महासम्मलेन से यह सिद्ध हो गया कि ब्रिक्स के प्रति कई देशों का आकर्षण बढ़ा है। इसमें कोई दो राय नहीं है। चीन और रूस का ब्रिक्स के विस्तार पर काफी जोर है।

 ब्रिक्स प्लस की अवधारणा बहुत तेजी से विकसित हो रही है, चीन इस पहलू पर जोर दे रहा है। रूस का भी कहना है कि ये समूह बहुधुवीयता का प्रतीक बन चुका है और इसका प्रमाण ये हैं कि ज्यादा से ज्यादा देशों का आकर्षण ब्रिक्स के प्रति बढ़ रहा है। भारत का भी ये मानना है कि ब्रिक्स अब विकल्प नहीं रहा। ये समूह अब वैश्विक व्यवस्था में खघस महत्व रखता है। 

भारत भी यही मानता आया है कि ब्रिक्स समूह बहुधुवीयता का प्रतीक है। भारत का ये भी कहना है कि ब्रिक्स अब अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से निपटने के कई तरीकों की अभिव्यक्ति भी करता है और वैश्विक एजेंडा पर नेतृत्व करने की भी क्षमता है। फिलहाल सिर्फ 5 देशों के सदस्य होने के बावजूद ब्रिक्स देशों में दुनिया की 40 फीसदी से ज्यादा आबादी रहती है। लैंड एरिया कवरेज के हिसाब से इस समूह में दुनिया का करीब 27 फीसदी लैंड सरफेस आ जाता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में इन देशों का एक बड़ा हिस्सा है। 

ब्रिक्स देशों का हिस्सा वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में करीब 30 प्रतिशत है। ब्रिक्स की ताकत को बताने के लिए ये आंकड़े काफी हैं। जिस तरह से ब्रिक्स को लेकर बाकी मुल्कों में दिलचस्पी बढ़ते जा रही है, ये कहा जा सकता है कि ब्रिक्स समूह का भविष्य बेहद उज्ज्वल है। जबकि एक दौर ऐसा भी आया था जब ब्रिक्स की प्रासंगिकता को लेकर सवाल उठने लगे थे। लेकिन पिछले दो साल में जिस तरह से कई देशों ने ब्रिक्स की सदस्यता को लेकर इच्छा जाहिर की है।  

कहा जा सकता है कि भविष्य में ब्रिक्स दुनिया का सबसे ताकतवर मंच बन सकता है। फिलहाल ब्रिक्स में शामिल सदस्य वो देश हैं जिनमें वैश्विक अर्थव्यवस्था में हलचल होने पर भी घरेलू अर्थव्यवस्था को संभालने और उसमें विकास की गति बनाए रखने की क्षमता और संभावनाएं भी है। साथ ही वैश्विक मांग और आपूर्ति की व्यवस्था को भी संभालने की ताकत है। 

यही वजह है कि तमाम अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगले 3 दशक में ब्रिक्स के मौजूदा सदस्य देश दुनिया में कच्चे माल, उद्योग, विनिर्माण और सेवाओं के सबसे प्रमुख आपूर्तिकर्ता होंगे। भारत और चीन की स्थिति उद्योग, विनिर्माण और सेवाओं के आपूर्ति के मामले में काफी मजबूत है और भविष्य में इसमें और मजबूती आएगी। वहीं कच्चे माल को लेकर रूस और ब्राजील का भविष्य उज्ज्वल है। साउथ अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में हुए ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में आखिर इसके विस्तार का फैसला हो गया।

 फैसले के मुताबिक पांच देशों- ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका- के इस संगठन में अगले साल 1 जनवरी को छह नए सदस्य- अर्जेंटीना, इजिप्ट, ईरान, इथियोपिया, सऊदी अरब और यूएई- जुड़ जाएंगे। वैसे ब्रिक्स के विस्तार पर चर्चा काफी पहले से हो रही है। 2009 में इस संगठन के अस्तित्व में आने के एक साल बाद यानी 2010 में ही इसमें साउथ अफ्रीका को जोड़ लिया गया। उसके बाद से ही नए सदस्यों की एंट्री पर जब-तब चर्चा होती रही है। 

लेकिन पिछले कुछ समय से यह मुद्दा काफी जोर पकड़ चुका था, जिसकी दो बड़ी वजहें रहीं। एक तो यह कि ग्रुप से जुड़ने की चाहत रखने वाले देशों की संख्या बढ़ती चली गई। 22 देश इस मंच का हिस्सा बनने के लिए बाकायदा आवेदन कर चुके हैं। 40 से ज्यादा देश इसकी इच्छा जता चुके हैं। हालांकि चीन सरकार नियंत्रित मीडिया ने कुछ दिन पहले पश्चिमी देशों पर आरोप भी लगा दिया कि वे नहीं चाहते विस्तार के बाद ब्रिक्स एक मजबूत संगठन बनकर उभरे, इसलिए भारत और चीन में फूट डालने की कोशिश कर रहे हैं। भारत के विदेश मंत्री समय समय पर इसका साीधा जबाव वैश्विक स्तर पर दे चुके है। 

वैसे भी जिस तरह से वर्तमान में विदेश नीति पर केन्द्र सरकार काम कर रही है वह बेजोड़ है। बहरहाल ब्रिक्स के विस्तार के ताजा फैसले से उस अजेंडे को आगे बढ़ाने में आसानी होगी। हालांकि इसके बावजूद इस फैसले में निहित चुनौतियों की अनदेखी नहीं की जा सकती। एक तरफ यह आशंका है कि इन नए सदस्यों में से कई देशों के साथ अपनी करीबी की बदौलत चीन इस मंच पर अपना दबदबा बढ़ाने का प्रयास कर सकता है। 

तो दूसरी तरफ कुछ हलकों में यह संदेह भी है कि चीन, रूस और ईरान जैसे देशों के प्रभाव में इसे पश्चिमी देशों के खिलाफ एक मंच के रूप में इस्तेमाल न किया जाने लगे। इन आशंकाओं और संदेहों के बीच सभी देशों के हितों में सामंजस्य स्थापित करते हुए बेहतर विश्व सुनिश्चित करने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए इस मंच को निश्चित रूप से ज्यादा परिपक्व और दूरदर्शितापूर्ण नजरिया अपनाना होगा।