युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
बहुत तलाशा..
कुछ भी तो नहीं मिला ,
सिवाय , कुछ किस्से तेरे चुप रहने के
कुछ किस्से मेरे न बोलने के !!
ये अजीब सा वहम् है
जाता ही नहीं ,
सिवाय , कुछ व्यस्त तुम दिखे
मैं भी उलझी रही कहीं !!
तमाम कोशिशें नाकाम रहीं
खुद को रोक सकने की ,
सिवाय , कुछ बंधनों में तुम रहे
आजाद मैं भी नहीं !!
शिकायत "इक" ही रही इस जिंदगी से बस
बाकी सब ठीक ही है ,
सिवाय , उदास तुम भी लगे
नाराज़ मैं भी रही !!
सुनों..
क्या है ये
जो चुप-चुप ही रहा ,
सिवाय , "ढूंढते" रहे तुम भी कुछ
मैं भी "सोचती" सी रही !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश