नफरत की फसल

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

दूर से देखते ही मन हर्षित हो उठा,

बाड़ घेरे गये थे,था बड़ा बड़ा खूंटा,

लहलहा रहे थे फसल,

लोग इंतजार कर रहे थे कि

उपज देख हम भी करेंगे नकल,

खाद, पानी, कीटनाशक डाले गए थे,

खरपतवारों को ध्यान से निकाले गए थे,

उसने तीन चार बार फसल लगाया,

हर बार बम्पर उपज पाया,

अब सब तरफ फसल लगाया गया,

जहरीले कीटनाशकों का जाल बिछाया गया,

फसल तो मिला जबरदस्त,

जमीन होने लगा पस्त,

फिजां में घुल चुका था खतरनाक जहर,

फिर वो दिखाने लगा अपना क़हर,

कुछ रो रहे थे कुछ गा रहे थे,

फसल के बीज एक दूजे को

तीव्र गति से काटे जा रहे थे,

बीज और फसल अभी भी चूर है

खिलाये गए खाद के असर से,

उधर बंजर हो रही थी भूमि,

शनैः शनैः हौले हौले।

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छ ग