युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
खिली मुस्कान के पीछे,
विरह का गम दहकता है।
ये वो मोती है आँखों का,
जो अश्कों से निखरता है।
मैं ढूंढूं तो कहाँ ढूंढूं,
न तेरा घर पता कोई।
बहुत सुनसान है मंजर,
शहर वीरान दिखता है।
तुझे मालूम तो होगा,
मेरी हर साँस में तुम हो।
तूँ खुश रहना मेरे हमदम,
कि मेरा दम निकलता है।
बड़ी मुद्द्त से बैठे थे,
तेरी आगोश में छुपकर।
कभी सोचा न था जिसको,
वही हासिल निकलता है।
कभी फुर्सत मिले आना,
तुझे जी भर के देखूँगी।
किया जिसने है मुझे घायल,
उसी से दिल बहलता है।
जो हम भूले तो क्या भूले,
भुलाना उनकी फ़ितरत है।
मेरे महबूब का क्या है,
वो मौसम सा बदलता है।
खिली मुस्कान के पीछे,
विरह का गम धहकता है।
ये वो मोती है आँखों का,
जो अश्कों से निखरता है।
बिन्दू चौहान जी,नौसढ,गोरखपुर,
उत्तर प्रदेश-9918920251