झारखंड साहित्य अकादमी की बाट जोहता झारखंड

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

झारखंड राज्य यूँ तो खनिज-संपदा  से लेकर , प्राकृतिक विविधता के लिये पूरे देश में मशहूर है। ये राज्य खनिज- संपदा से लेकर पहाड - पठार से भरा- पूरा  है। यहाँ कई  महत्वपूर्ण पर्यटक  स्थल  भी हैं। जो सहज ही पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर , खींच लेते हैं । राँची के दशम फाॅल से लेकर , नेतरहाट की खूबसूत वादियाँ और मनोरम दृश्य कुछ ऐसी कुदरती बनावट की हैं । जो सहज ही आपका मन- मोह लेंगीं। अंग्रेजोंं के समय का बसाया हुआ  एक कस्बा  मैकलुस्कीगंज  भी है । जिसे झारखंड का मिनी लंदन भी कहा जाता है । वो , भी झारखंड के खूबसूरत  दर्शनीय पर्यटक स्थलों में से एक है । 

इतनी संभावनाओं के साथ ही कुछ निराश के बादल भी हैं। उदासी के ऐसे बादल जोकि  पिछले दो - दशक से झारखंड के साहित्यकारों पर छाये हुए हैं । जो निकट भविष्य में छँटने का नाम नहीं ले रहें हैं । आज  हमारे झारखंड  राज्य को बने  दो , दशक  से ज्यादा का समय बीत गया  है लेकिन , आज भी झारखंड साहित्य अकादमी की स्थापना अभी दूर की कौड़ी लाने जैसा दिवा स्वप्न  ही लग रहा  है। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद यहाँ  यू. पी. ए. और एन. डी. ए. दोनों की सरकारें रहीं। लेकिन किसी  सरकार ने भी झारखंड साहित्य अकादमी के गठन को लेकर रूचि नहीं दिखाई है। 

 जहाँ दूसरे राज्यों क्रमश: बिहार , उत्तर प्रदेश , हरियाणा , राजस्थान , नई दिल्ली ,  के साहित्यकारों को अनुदान (किताबों के प्रकाशन के लिये)  तो प्राप्त होते ही हैं । साल में लाखों रूपये के पुरस्कार-सम्मान भी मिलतें  हैं । ऐसा भी नहीं है कि हमारे झारखंड राज्य में हिंदी  साहित्य  लिखने- पढ़ने वाले लोग नहीं हैं । लेकिन , इन महती प्रतिभाओं और लेखकों की किताबें अनुदान ना मिल पाने के कारण प्रकाश में आने से रह जातीं हैं । साथ ही यहाँ की सरकारों का चाहे वो एन. डी. ए. की सरकार रही हो , या यू. पी . ए . की सबने इस ओर से आँखें बँद कर रखा है । या यों कह लें कि हम साहित्यकारों को ठगा ही है। जहाँ तक मेरा विचार है ।

 झारखंड अकादमी की स्थापन नहीं होने के कारण  साहित्य का बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है ।  हमारे राज्य ( झारखंड ) के  चर्चित साहित्यिकार और मूर्धन्य कवि/  शिक्षक / साहित्यिकार शिरोमणि महतो भी रहें हैं । जो झारखंड साहित्य अकादमी  स्थापना आँदोलन के अगुवा भी रहें हैं । अत्यंत पिछड़े और देहात जैसे जगह में रहकर वो शिक्षा की अलख तो जगा ही रहें हैं । साथ ही हिंदी  साहित्य को अपने लेखन के दम पर देदीप्यमान भी कर रहें हैं। कहने की आवश्यकता नहीं है । 

इन्होंने ना सिर्फ हिंदी साहित्य की सेवा पिछले दो दशकों से करते आ रहें  है ।  बल्कि , वो झारखंड साहित्य अकादमी की स्थापना को लेकर बहुत मुखर भी रहें हैं। " शिरोमणि महतो "  जी ने इस दशा में झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन जी को कई पत्र भी लिखा । और हमारे झारखंड के बहुत सारे साहित्यकार बँधुओं ने भी कोविड काल में ( फरवरी -2020 )  में झारखंड के मुख्यमंत्री को कई पत्र भी  लिखे । लेकिन, परिणाम , आज भी ढाक के तीन पात जैसा ही है l  इसके अलावे माननीय विधायक विनोद कुमार सिंह जी के द्वारा शिरोमणि महतो ने विधानसभा सत्र में प्रश्न भी उठवाए, सरकार ने स्वीकार भी किया । बावजूद , इसके मामला आज भी अधर में ही लटका हुआ है । 

श्री , शिरोमणि महतो झारखंड , साहित्य अकादमी की स्थापना को लेकर  सचेतक भी रहें हैं । लेकिन वर्तमान सरकार की  उदासीनता के कारण अब भी झारखंड साहित्य अकादमी की  स्थापना अभी कोसों दूर दिख रही है l जबकि , झारखंड अलग राज्य बने अच्छा खासा समय हो गया है। लेकिन , अभी तक इस दिशा में कोई सार्थक शुरूआत सरकार की तरफ से होता दिखाई नहीं देता । निश्चय ही वर्तमान  सरकार का ऐसा रवैया यह

झारखंड के साहित्यकारों में क्षोभ पैदा करता है । सरकार भाषा और साहित्य का नुकसान झारखंड साहित्य अकादमी ना बनाकर अलग से कर रही है । ये बहुत ही दुखद और हमारे हिंदी  साहित्य के लिये दु:ख की बात है। हो सकता है हमारी सरकार का ध्यान इस ओर बहुत बाद में जाये । लेकिन , तब तक साहित्य का बहुत नुकसान हो चुका होगा ! 

सर्वाधिकार सुरक्षित

 महेश कुमार केशरी

 मेघदूत मार्केट फुसरो 

बोकारो झारखंड

पिन-829144

email-keshrimahesh322@gmail.com