प्रीत पिया संग ऐसे मोरा जैसे चाँद और सूरज,
वो नरेश है दिवा का, मैं यामिनी की मृण्मयी मूरत।
सोलह श्रृंगार कर तीज का व्रत करूँ पावन,
मैं हूँ उसकी जोगनी वह है मेरे प्रीत का सावन।
शिव, गौरा, गणेश की करुं मैं उस दिन पूजा,
हर जन्म में पाऊं उनको ही अपने पति स्वरुपा।
सुख हो या दुःख कभी ना साथ छूटे अपना,
हँसी-ख़ुशी कट जाये जीवन जैसे सुंदर सपना।
माँग सिंदूर सजाकर इनके द्वारे आयी,
सजी माँग में ही हो मेरी अंतिम विदाई।
टिमटिमाते तारों सम दमक जाऊँ बन कामिनी,
सुहाग चिन्ह से दंभित,रहूँ सदा सुहासिनी।
रीमा सिन्हा (लखनऊ )