चलो ,उस, खिड़की से हम झांकें, जहां नजरों पे पहरा है। ----
जहां पंजों में जकड़ा जिस्म, जिसपर घाव गहरा है।।---
करुण चीत्कार जिसमें से,हर सुबह शाम आती है,-
जहां होंठों पर है कंपन काजल आंख का पसरा है।।चलो,उस, खिड़की से हम झांकें,
जहां नजरों पे पहरा है।।--1।।
जहां दम घूंटता अक्सर, आशा में निराशा है।।पराया तो पराया है, जहां अपनों से खतरा है।।
चलो उस खिड़की से हम झांकें जहां नजरों पे पहरा है।।--2।।
दर्दे दिल की सच्चाई, बयां करती तो है लेकिन,
सरस सुनता नहीं कोई लगता ,हर कोई बहरा है।--
चलो,उस, खिड़की से हम झांकें जहां नजरों पे पहरा है।।--3।।
गौरीशंकर पाण्डेय सरस