गीत

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

चलो ,उस, खिड़की से हम झांकें, जहां नजरों पे पहरा है। ----

जहां पंजों में जकड़ा जिस्म, जिसपर घाव गहरा है।।---

करुण चीत्कार जिसमें से,हर सुबह शाम आती है,-

जहां होंठों पर है कंपन काजल आंख का पसरा है।।चलो,उस, खिड़की से हम झांकें,

जहां नजरों पे पहरा है।।--1।।

जहां दम घूंटता अक्सर, आशा में निराशा है।।पराया तो पराया है, जहां अपनों से खतरा है।।

चलो उस खिड़की से हम झांकें जहां नजरों पे पहरा है।।--2।।

दर्दे दिल की सच्चाई, बयां करती तो है लेकिन,

सरस सुनता नहीं कोई लगता ,हर कोई बहरा है।--

चलो,उस, खिड़की से हम झांकें जहां नजरों पे पहरा है।।--3।।

गौरीशंकर पाण्डेय सरस