अंडे देना बंद करो

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

पहले समझदार को इशारा काफ़ी था। अब इशारे को समझदार मिल जाए वही गनीमत है। सभी जानते हैं कि हम कांक्रिट के जंगल में रहते हैं। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो हर पाँच साल के लिए जंगल का राजा चुन लेते हैं। सबको पता है कि जंगल का राजा शेर होता है। चूंकि जंगल में अलग-अलग तरह के जानवर रहते हैं इसलिए सभी शेर नहीं हो सकते। इसलिए हम जिसे चुनते हैं, उसे ही शेर मान लेते हैं। हुआ यूँ कि एक दिन इसी जंगल में पक्षी कहलाने वाले निरीह प्रजा के घोंसले में गुंडई करने वाला साँप घुस आया। आप जानते ही हैं कि साँप को अंडे कितने प्रिय हैं। वह अपने स्वभाव के अनुसार आए दिन अंडे खाता रहा। पक्षी की बेबसी यह थी कि वह केवल वोट डालकर राजा चुन सकता था, लेकिन राजा के पास पहुँचना उसके बस की बात नहीं थी। वह क्या है न कि दुनिया वोट से पहले और बाद के बाद अलग होती है। अंतर केवल इतना होता है कि वोट वाले दिन अमीर-गरीब, ऊँच-नीच, छोटा-बड़ा सब एक समान होते हैं। उसके पहले या उसके बाद फिर से दुनिया इनमें भेद करने लगती है।

सौभाग्य से पक्षियों का पक्ष रखने के लिए भालू आगे आया। उसने पक्षियों की पैरवी की। इस कान उस कान मामला शेर तक तक पहुँचा। शेर तो शेर होता है। इसे सिद्ध करने के लिए उसने साँप का खात्मा कर डाला। पक्षियों को शेर की सुरक्षा का आश्वासन मिल गया। लेकिन भालू दोहरी खाल वाला था। मृत साँप के बंधुजनों से मिलकर उनके पक्ष में खड़ा हो गया। वहाँ उसने मृत साँप के परिजनों को न्याय दिलाने का आश्वासन दे डाला। वह जंगल के अन्य जानवरों के साथ मिलकर फिर से शेर के पास हाजिरी लगाई। इस बार वह मृत साँप के परिजनों के लिए न्याय चाहता था।

शेर को लगा कि मैं किसी को भी दंड देता हूँ तो वह किसी न किसी को अन्याय लगेगा। इसलिए स्थाई समाधान ढूँढ़ने की आवश्यकता है। बहुत सोचने-समझने के बाद शेर ने पक्षियों को अपने पास बुलाया। फिर कहा, इस झगड़े का मूल अंडों में छिपा है। इसलिए मैं आदेश देता हूँ कि अब से तुम अंडे नहीं दोगे। न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी। सभी जानवरों ने शेर के फैसले का समर्थन किया। इस तरह जंगल का शासन 21वीं सदी में भी बदस्तूर जारी है।  

 डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, चरवाणीः 7386578657