कतरा कतरा

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


मोम का कतरा बनकर यूं जले,

रोशनी से निकल अंधेरों में पले।

उजाले के लिए न देखा सूरज का रास्ता,

जुगनूओं की चमक को साथ ले चले।


फलक के तारों में सैलाब मिल गया,

रोम रोम मेरे जमीर का खिल गया।

काफिला जो मिला मुस्कुराहटों का हमें,

मगरूर किरणों का भी लब सिल गया।


इश्क को तेरे रोशनी समझ बैठे सनम,

दिल्लगी से तेरी ही ऐसे रूठे सनम।

दिल के टुकड़ों को हमसे समेटा न गया,

हिसाब मोहब्बत का तुझसे ही कह बैठे सनम।


दास्तान कतरा कतरा लिख गई जिंदगी की,

हर एक सांस भी बौरा सी गई बंदगी की।

अश्कों ने यहां ऐसा जादू दिखाया सनम,

दस्तूर-ए-हवा बदल गई पाबंदगी की।।


शिखा अरोरा (दिल्ली)