पोला त्यौहार विशेष

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

भारतीय समाज में अनेक प्रकार के रीति रिवाज  एवं परंपराओं का संगम देखने को मिलता है जो की कहीं ना कहीं हमारी भारतीय  संस्कृति  और भारतीय सांस्कृतिक विरासत का ही अभिन्न अंग है देश के अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग त्योहारों की अपनी महत्व होता है ऐसे ही एक त्यौहार पोला का त्यौहार है जो कि अपनी एक अलग पहचान लिये होता है हमारे देश मे बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है हमारे देश में प्रमुखता से छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में इस त्यौहार को मनाया जाता है क्योंकि भारत कृषि प्रधान देश है और आधुनिक कृषि उपकरणों के आने की पूर्व और वर्तमान कृषि कार्यों में बैल आदि का प्रयोग किया जाता है जिन्हे लक्ष्मी की संज्ञा भी दी जाती है कृषि कार्य में सहयोग करने का प्रतिफल और आभार स्वरूप इनकी सेवा सत्कार का पर्व होता है पोला |

पोला का पर्व अन्नमाता (धान)  के गर्भ धारण के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला त्यौहार है चुकी अनाज इस समय  गर्भधारण की अवस्था मे होती है जिस प्रकार माताओ को सात माह के गर्भधारण के समय गोद भराई की संस्कार की जाती है ठीक इसी प्रकार  रविवार की दिन  खेतों में नारियल और चीले रोटी का प्रसाद चढ़ाकर अन्न माता की गोद भराई का कार्यक्रम करते हैं जो की क़ृषि परम्परा का अभिन्न हिस्सा है | प्रतिवर्ष पोला का त्यौहार मनाया जाता है इस दिन बैलो को धोकर विभिन्न प्रकार के चित्रों और फूल मलाओ से रंग से सजाया जाता है और पूजा पाठ किया जाया है जिसमे विभिन्न व्यंजन बनाकर खिलाये जाते है जिसमे गुरहा चीला,सोहरी,अरसा महाराष्ट्र मे पूरन पोली बनाई जाती है  | पूजा के पश्चात भोग लगाया जाता है फिर बैल सजावट,बैल दौड़ प्रतियोगिता मे शामिल किया जाता है और प्रथम आने और सजावट मे प्रथम आने वाले को उसके मालिक सहित पुरुस्कृत कर सम्मानित भी किया जाता है | मिट्टी के बैल बनाकर

उसकी पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि बैल को नंदी का स्वरूप माना जाता है क्योंकि नंदी साक्षात भगवान शंकर जी का ही स्वरूप है और भगवान शंकर जी सुख और समृद्धि के दाता है अतः आप की आराधना कर हैं सुख समृद्धि की कामना करते है |

छत्तीसगढ़ संदर्भ में देखें तो इस पर्व मे एक और सांस्कृतिक विरासत की झलक दिखाई देती है इस पर्व में जहां पुरुषों के माध्यम से बैलदौड़, बैल सजावट का खेल और प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है उसी सतरह बालिकाओं और समस्त महिला संवर्ग के लिए विभिन्न प्रकार के खेलकूद के साथ ही बालिकाओं के

द्वारा अपने लिए घरघुँदीया (रेत का घर ) जिसे हिंदी मे घरौंदाकहते है बनाया और खेल खेला जाता है |

जिसमे के मिट्टी के बैल के साथ गृहस्थी के लिए उपयोग किए जाने वाले जैसे बर्तन  जैसे लोटा थाली बाल्टी गिलास आदि भी मिट्टी के ही खरीदे जाते हैं मिट्टी के नंदी के साथ साथ ही उन सारे बर्तनो के सामानों का भी पूजा किया जाता है दोपहर के बाद शाम को नदिया अथवा नाले में रेत के घर बना कर घर घर जिसे घरघुँदीया का कहते है का खेल खेलते है जिसमे लडके लोग लकड़ी या मिट्टी के बैल को लेकर दान के लिए प्रत्येक घरों में जाते हैं जँहा बालिकाओं द्वारा उन्हें प्रसाद और दान दिया जाता है  | इस तरह पोला का यह पर्व हमारे जीवन में दान दक्षिणा की परंपरा का भी दर्शन कराती है साथ की समस्त बालिकाओं के लिए परिवार का संचालन कैसे किया जाए और गृहस्थी को कैसे संभाले, कैसे चलाये की शिक्षा खेल खेल के माध्यम से प्राप्त हो जाती है | यह पर्व जीवन दर्शन का कार्य करती है जो कि जहां जीवन के एक बहुत ही महत्वपूर्ण शिक्षा  है इस खेल को स्थानीय भाषा में घरघुँदीया कहते हैं हिंदी में घरौंदा कहते है |

पोला का पर्व दान का भी महापर्व माना जाता है कहा जाता है कि भगवान भोले शंकर नंदी को लेकर दान के लिए घर-घर में जाते थे जिस घर से दीक्षा प्राप्त करते थे उनका कल्याण कर देते थे और फिर इसी तरह से नंदी को दान देने की परंपरा का शुरुआत हुआ इस दिन किए गये दान का विशेष महत्व है इसलिए सभी लोगों को इस दिन विशेष पूजा अर्चना के साथ नंदी को दान देना चाहिए और पुण्य का लाभ प्राप्त करना चाहिए साल भर में एक बार यह पर्व आता है इसलिए इस दिन बच्चों को दान दक्षिणा के संस्कार सिखाये जाने की आवश्यकता है यह शुभ दिन होता है जिस दिन दान और दयालुता तथा मानव मानव के प्रति उदारता और आपसी प्रेम के संस्कार बच्चों के मानस पटल पर रोपित की जा सकती है |

पोला के पर्व का धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व है वैसे ही इसका आस्था और विश्वास के साथ भी गहरा संबंध है पोला का त्यौहार भारत की सांस्कृतिक झलक को प्रदर्शित करता है हमारी कृषि में सहयोग करने वाले बैलों का आभार का दिवस होता पोला तो दूसरी ओर नंदी बैल के पूजा का भी दिन होता है और पुण्य  लाभ का योग बनता है वही खेल के माध्यम से अपने घर परिवार को संभालने की नवीन सीख सभी बालिकाओं के अंदर रोपित करने का अवसर प्राप्त होता जो बालक बालिकाओं को आगामी भविष्य के संघर्ष के लिए तैयार होने का एक अवसर हमारे रीति रिवाज और संस्कार के माध्यम से प्राप्त होता है | हमारे देश के तीज त्यौहार शुरुआत से लेकर अंत किसी ना किसी ने किसी सीख,शिक्षा और संस्कारो को जन मनास मे रोपित करते हुये पूर्णता की ओर जाती है Iऐसे संस्कार और रिवाजों का पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण और संरक्षण भी जरूरी है ताकि आने वाली पीढ़ी को भी इन संस्कारों से नई नई चीजें सीखने को मिल सके और वह भी जीवन जीने की कला को सीखते हुए अपने आप को इस समाज के अनुरूप ढाल कर अपने जीवन यापन करते हुये और उन संस्कारो के साथ एक नए भारत के निर्माण की ओर आगे बढ़ सके |


आलेख

प्रमेशदीप मानिकपुरी

आमाचानी धमतरी छ ग

9907126431