नारी की पीड़ा

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


दर्द भरा है कितना देखो,

नारी का अपमान हुआ।

जन्म से लेकर मरण तक,

उसका शोषण हरबार हुआ।


 गलत स्पर्श बचपन में झेले,

 मन में फिर विकार हुआ।

 नहीं मिला मन का साथी,

 फिर उसका बहिष्कार हुआ।


रुदन भरा है उन आंखों में,

समाज से ठुकराई हैं जो।

इंसानियत अब तलक,

देखो जार जार होती आई।।


कहीं हुआ है शोषण उसका,

भेदती नजरों से वार हुआ।

कौन समझे उन भावों को

जिनसे उसका साक्षात्कार हुआ।


कहीं दहेज के लोभी भेड़िए,

अभी लूटते हैं उनको देखो।

कहीं वक्त की परेशानी,

घुटने पर मजबूर हुई।


कदम कदम पर हुई हूं शोषित,

देख पुरुष को डरती हूं।

मिल ना जाए कोई भेड़िया,

संभल कर देखो चलती हूं।


कब तक होगा नारी शोषण,

बंद करो यह अत्याचार।

उसी की कोख से तुम जन्मे,

समझो जरा उसके विचार।


मां रूप में पूजा करते,

बहन कि तुम रक्षा करते 

फिर क्यों किसी और को देख

बुरी नजर उस पर धरते।


छोड़ दो तुम सब बातें को

ना उसको तुम  मजबूर करो

सहनशीलता को ना भूला कर

उसके हाथों तुम शस्त्र धरो।


           रचनाकार ✍️

           मधु अरोरा