कर्मों की बेदी पर हमने ,
घूंघट का बलिदान किया।
पल्लू सरक गए सर से,
बोझ को अंगीकार किया।
मेहंदी की खुशबू को हमने,
पल एक हीं में पखार दिया।
अभी छुटा नहीं आलता पग से,
खुद दफ़्तर को तत्पर किया।
छोड़ बाबुल का आंगन हमने,
सासरे को स्वीकार किया ।
हुए दूर अब हम लड़कपन से,
जिम्मेदारियों को स्वीकार किया।
दहलीज पे अभी पग धरे थे हमने
और अभी-अभी इसे पार किया।
अभी खुशबू मिटी नहीं सेज से,
पन्नों में वक्त व्यतीत किया।
इस मधुर रस वेला में हमने ,
नवल चुनौती स्वीकार किया।
जीवन के सुख चैन को हमने
भागा दौड़ी पे कुर्बान किया ।।
अर्चना भारती
पटना बिहार