हरितालिका तीज

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


महादेव संग विराजती हैं प्रिय गौरा,

सौभाग्य अखंड का वर दे जाती गौरा।

बीता सावन मास भादो है आया,

सुभग करों से सुवासित व्रत है लाया।

भाद्रपद की हस्त नक्षत्र तृतीया,

संग लाया सुहाग व्रत हरितालिका।


अत्यंत कठिन इस व्रत को पार्वती ने था निभाया,

तब जाकर महादेव को पति के रूप में पाया।

सजल नयन, तृषा से आकुल तप में तल्लीन रहीं,

सुध-बुध बिसुराकर भोले भाव में लीन रहीं।


महलों के वैभव से इतर कैलाश उन्हें था जाना,

कर झंझावतों का सामना शिव जी को था पाना।

पिता  ने जब भगवान विष्णु से विवाह पक्का किया,

हर ले गयी वन में सखियां नाम हरितालिका पड़ा।


बालू की बना प्रतिमा चौबीस घण्टे निर्जला रहीं,

दिन रात शिव भजन,पूजा और सेवा करती रहीं।

दूसरे दिन प्रतिमा को कर प्रवाहित पारण किया,

इसी दिन शिव ने अर्धांगिनी बनाने का वरदान दिया।


चौकी सजाकर करती सुहागिनें व्रत यह पावन,

चूड़ी, सिंदूर, बिछुआ, पायल श्रृंगार अति मनभावन।

शिव गौरा संग गणेश की पूजा की है जाती,

नव दुकुल धारण किये मिट्टी की प्रतिमा अति है भाति।


रात भर जागकर ढोल मजीरे की थाप पर मंगल गीत,

चाँदनी और चंदोवा से पूजा मंडप सुशोभित।

प्रातः काल चौरा विसर्जन से व्रत खुलता विधिवत,

ठेकुआ,पेड़ूकिया का प्रसाद, आशीष बड़ों का वरदहस्त।

करूँ मैं यह व्रत अमर सुहाग का वर पाने के लिए,

प्रियतम चिरायु हो मेरा,सदा माँग सिन्दूर सजाने के लिए।


            रीमा सिन्हा (लखनऊ )