नारी (मरहठा छंद )

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


मम महतारी, मन अति प्यारी, करती तुम्हें प्रणाम |

सब सुख निज खोती, खुशियाँ बोती, कर्म करे निष्काम ||

ईश्वर यह रूपा, दिव्य स्वरूपा, नारी श्रेष्ठ महान |

मन बहु अति कोमल, भाव सुकोमल,अनुपम रचा विधान ||


गंगा सम धारा,प्रेम प्रकारा,निश्छल निर्मल पान |

सब धर्म निभाती, मन हर्षाती, नारी है अभिमान ||

घर सब महकाती,लाड लडाती,लगती सुंदर शाम |

खुद को वह भूली, प्रेमिल धूली,माई कोटि प्रणाम |


सब देव बखाने, जग सब जाने, अरि का तू ही काल |

कल प्रथम जनाये, लाल बचाये, बनती खुद ही ढाल ||

अंबर तक झुकता, गौरव करता, यही जगत आधार |

ममता सब प्यारी, मूरत न्यारी, नवल करे संसार ||


है प्रेम पुनीता, भगवदगीता,सुंदर गुण की खान |

है शक्ति स्वरूपा, दिव्य अनूपा,देती जीवन दान ||

सबकी मन आशा, प्रेम प्रकाशा, सर्व सकल विस्तार |

सम सुंदर समता, नारी ममता, करुणा कलित प्रकार ||


करुणा का सागर, ममता गागर,नारी कर्म महान |

मन प्रेम समर्पण,सुख का दर्पण,ममता ही पहचान ||

 संकल्प प्रदाता, निज सुख दाता, गढ़ती है संसार |

यह उजली आभा, शोभित शोभा,निर्मल गंगा धार ||

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कवयित्री

कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "

लखनऊ

उत्तरप्रदेश