सुंदर बाबू विद्यालय से आकर सोफे पर पसरे ही थे कि उन्हें फुसफुसाने की आवाज़ आई। झट से कान लगाकर वे सुनने लगे।
अरे ये तो जानी-पहचानी आवाज है। रागिनी अपने भतीजे को कुछ समझाये जा रही थी -
"आज़ादी हर एक को पसंद है . पिंजरे में सबका दम घुटता है. आज़ादी का मोल तो वही पहचानते है,जिन्होंने गुलामी से सबक सीखा है. सबसे खूबसूरत पल वह होता है,जब पराधीनता के आकाश पर चमकता है स्वतंत्रता का सूरज,तब खुलती है पावों की बेड़ियां। और आज़ादी के परवाने तब हो जाते हैं भस्म विद्रोह की ज्वाला में,मगर जला जाते है लौ,और फूँक जाते है शंख गुलामी से मरते अंतरात्मा में।"
रागिनी जिसतरह कड़वी सच्चाई उड़ेल कर आजादी का मूल समझा रही थी, सुनकर सुंदर बाबू हैरान थे। उनकी आत्मा में एक ही सवाल फुसफुसा रहा था, क्या दिखने वाले हर वस्तु वाकई सोना नही होता।
रानी प्रियंका वल्लरी
बहादुरगढ़ हरियाणा