बोल दो जो मन में है, प्यार का इजहार करो।
सुन स्वर्ग की अप्सरा, मुझसे तुम प्यार करो।।
तुम मुझे,मैं तुझे पसंद, क्यों खामोश बैठी हो।
छीन ली मुस्कान मेरी, तुम बहुत ही हठी हो।।
मेरे दिल को दुखा कर, आखिर क्या मिलेगा।
मुझसे बात ना करके, मन बाग कैसे खिलेगा।।
मैं जा रहा हूं दूर तुमसे, एक बार आवाज दो।
लेकर यादों की परछाई, राह में मेरा साथ दो।।
रखूंगा सदा पलकों में, दुःख को सुख में ढ़ाल।
हमारा प्यार अमर रहेगा, प्रेमी जन देंगे मिसाल।।
झलक पाकर मैं दीवाना, तुझे अपना मान बैठा।
बंद आंखों के सपने, खुली आंखों में था झूठा।।
बना गायक प्रेम का, गलियों में गीत गाने लगा।
बैठ तुम्हारी द्वार पर, मधुर नाद से रिझाने लगा।।
लाल गुलाब की कली, मधुकर को बुलाने लगी।
आओ मीठा रसपान करो, बदन में आग लगी।।
छू लो मुझे एक बार, सहला दो नर्म पंखुड़ियां।
तृप्त हो जाऊं पाकर, मिटा दो बीच की दूरियां।।
रात मीठा रसपान कर, मन मेरा आनंदित हुआ।
आऊंगा मकरंद पीने, सुप्त हृदय स्पंदित हुआ।।
कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़ (भारत)।