निज विधु की चाँदनी

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


करुण उच्छवास से स्याह रजनी,

चिर क्रन्दन प्रतिध्वनित दामिनी,

चिरंतन वेदना से जली युगों तक,

पर कहलाऊं  मृण्मयी अनुरागिनी।


विहग ज्यों हो विजन वन में,

तृषा से आकुल घूमे गगन में,

अथाह मरु की थाह अब जानी,

शुष्क हिय छलके दृग यामिनी।


आराध्य चिन्मय वह है मेरा,

तम में आस का वही सवेरा।

निजत्व को बुझा भी बनूं सयानी,

थाम ले जो हाथ तू अभिमानी।


सजल लोचन पर चित्र अमिट है,

परिधि से पृथक प्रेम अपरिमित है।

विरज स्याह शाम की रानी,

हाँ, बनूँगी मैं निज विधु की चाँदनी।


             रीमा सिन्हा (लखनऊ )