कान्हा, देखो मुझे यूं न सताना

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


आज तो तुझे सब जगह जाना है

माखन - मिश्री खूब खाना है,

बैठी हूँ भोग लगाएं कब से मैं भी

वक्त निकाल थोड़ा सा

पास मेरे भी आ जाना।


कान्हा, देखो मुझे यूं न सताना

देर थोड़ा सा ही करना बहुत न लगाना,

अखियाँ लगी है रस्ते पर

नींदों को मेरी और न थकाना।


प्रतीक्षा करते - करते

कहीं आंख न लग जाए,

इत्ता सा ध्यान रखना,

अधिक समय ना लगाना।


चाहिए कुछ नहीं तुमसे

ये तुम जानते हो,

दर्श को बस तरसे अखियाँ

मन मेरा पहचानते हो।


बोझिल पलकों पर

तुम्हारे स्वप्नों के पदचिन्ह मिल जाए,

दुख की काली घटाएँ

तेरी बंशी की धुन में घुल जाए।


व्यथा, विपदा सब मिट जाए,

छाया जब ये तुझमें सिमट जाए।


-वंदना अग्रवाल 'निराली'

लखनऊ, उत्तर प्रदेश