मत बशर इतनी सियासत से मुहब्बत करना खींचने मौत से कुर्सी नहीं आया करती

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


इश्तिहा करने से पूँजी नहीं आया करती

पेट में भूख से रोटी नहीं आया करती


तन उठाकर तो निकलना ही हमें पड़ता है

घर में बैठे हुए रोज़ी नहीं आया करती


जब तलक हाथ से अपनी न उठाएगा बशर

काटने लकड़ी को आरी नहीं आया करती


जब तलक साथ न हो हाथ किसी साथी का

रुख़ पे खिलती सी वो नूरी नहीं आया करती


कुछ तो उनको भी हमारे लिए लगता होगा

याद उनकी हमें यूँ ही नहीं आया करती


देने से पहले किसी को तू ज़रा सोच ले रे

दिल बचाने कोई ख़ाकी नहीं आया करती


इस जहाँ अपनों से बतियालो ज़रा तुम यारों

उस जहाँ से कोई चिट्ठी नहीं आया करती


मत बशर इतनी सियासत से मुहब्बत करना

खींचने मौत से कुर्सी नहीं आया करती


मत ढकेलों कभी यूवा को नशे में ओ बशर

लौट सैलाब से कश्ती नहीं आया करती


प्रज्ञा देवले✍️