ग़ज़ल : पिता

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


और ही गुम थी कहीं ये जग दिखाया आपने

या ख़ुदा मैं हूँ ऋणी इंसां बनाया आपने


भूल सकती मैं नहीं मुझको पढ़ाया आपने

जब भी रोई रोती आँखों को हँसाया आपने 


ज़िंदगी के इस सफर में थक गई जब भी कभी

थाम शाने हौंसला मेरा बढ़ाया आपने


ज़िंदगी की हर घड़ी में मुस्कुराना ही नहीं

मुश्किलों को पार करना भी सिखाया आपने


हो पिता मेरे मुझे पलकों बिठाया इस तरह

रातभर जागे मगर मुझको सुलाया आपने


कर्ज़ कैसे मैं चुका पाऊँगी बाबा आपका

करके मेहनत और मशक्कत खूँ बहाया आपने


मँहगे जग के इस जहाँ में पोखरों के पानी में

कागजी इक नाव से मुझको घुमाया आपने


प्रज्ञा देवले✍️