हमें स्वयं ही तय करना है

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


हमें स्वयं ही तय करना है जीवन के संग्रामों को

 याद रखें उन अवशेषों को या मन के अविरामों को


मुश्किल पल पल जीवन अब तो व्यर्थ लग रहा जीवन है

 कर जाऊंँ कुछ लेखा-जोखा पापों का मुख सीना है 


लिखा पढ़ी का चित्रगुप्त जी खोलेंगे परिणामों को 

हमें स्वयं ही तय करना है जीवन के संग्रामों को


अंतर्द्वंदों की माला उर भग्निवेष सौगात बनी

कब तक इसे सजा के रक्खूंँ यह दुविधा की बात बनी


 स्वार्थ लिप्त हो भोग रहा है रूह देह के नामों को 

हमें स्वयं ही तय करना है जीवन की संग्राम को


राग देह की मिटी ज्यों ही नाम देह का बदल गया

 शव कह कर संबोधित था तन सुनकर यह मन दहल गया 


कैसे जीवन कितना जीवन ढोना अल्पविरामों को

 हमें स्वयं ही तय करना है जीवन की संग्रामों को।


ज्योति जैन'ज्योति'

कोलाघाट

पं बंगाल