"सोलह सावन..."

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


माँ ने गोद में बिठाकर..., 

बाल सहला भी न पाया सोलह सावन ।

पिता का उंगली पकड़कर..., 

चंद कदम चल भी न पाया सोलह सावन ।।


गिरा हुआ इंसान उठाने की..., 

दलील हर मुहल्ले चौराहे पर देता रहा ....।-2

देकर दलील खुद को भी..., 

सम्भाल पाया न बचा पाया सोलह सावन ।।


जात क्या है.., धर्म क्या है..., 

सबका मालिक एक, इंसान तो इंसान है...।-2

बचपन से किशोर तक की.., 

दहलीज पार भी न कर पाया सोलह सावन ।। 


न जाने कौन सा रोग लगा... ,

लोग  कहते  है  जिसको  प्रेम  रोग  है .....। -2

पागल भी हुआ प्रेम रोगी भी..., 

मासूम जवानी खेल भी न पाया सोलह सावन।। 


काम चाहिए कविता चाहिए..., 

कमल  भी  चाहिए  यही  रटता  रहा  मैं ....। -2

न जाने किसकी नज़र लगी..., 

मायूस मैं सम्भल भी न पाया सोलह सावन ।।


नादान भी था अनजान भी ...,

इस कदर सोचा भी नहीं समझा भी नहीं....। -2

किसी से सुना भी न पाया..., 

शाह किसी से कह भी न पाया सोलह सावन।। 


माँ ने गोद में बिठाकर..., 

बाल सहला भी न पाया सोलह सावन ।

पिता का उंगली पकड़कर..., 

चंद कदम चल भी न पाया सोलह सावन ।।।।।।


स्वरचित एवं मौलिक

मनोज शाह 'मानस'

manoj22shah@gmail.com