वो देखेंगे क्या देश को अब दिलों से
जिन्हें है मुहब्बत अजी कुर्सियों से
न कर ख़्वार ऐसे अदावत से खुद को
बशर ज़िंदगी मिलती है मुश्किलों से
परिंदा कहे ये हमेशा परो से
वो अंबर मिला है हमें हौसलों से
मुहब्बत के दिल से अगर मैं पुकारूँ
निकलता है मेरा ख़ुदा पत्थरों से
ग़ज़ल से मिलेगा जवाबे तलब फिर
अगर हाल पूछोगे तुम शायरों से
अगर ज़िंदगी का सफ़र मौत तक है
तो होती नहीं वापसी मंज़िलों से
ग़मों से पड़ा जब से पाला हमारा
गुज़रने लगी ज़िंदगी मैकदों से
प्रज्ञा देवले✍️