नारी कब तक यूँ

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


नारी कब तक यूँ,

अविरल अश्रुधार बहाओगी,

कब तक कातर क्रंदन सुना,

नटवर नागर को बुलाओगी।


 दृग मुक्ता को अब,

 बनने दो दाहक अनल,

तुम जड़ चेतन की देवी हो,

तुमसे बढ़कर कौन सबल?


तुम  सिर्फ समता की नहीं,

सर्वोच्चता की अधिकारिणी हो,

तुम बिन अकल्पित जगत का सार,

तुम सकल सुमंगलकारिणी हो।


ध्वस्त करो इस मिथक दुर्ग को,

निज संबल खुद बन जाओ,

जगत जननी,भवतारिणी हो तुम,

स्वयं की मार्ग प्रशस्ता बन जाओ।


             रीमा सिन्हा (लखनऊ)