शिल्पकार

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


हूँ शिल्पकार मैं शब्दों की,

प्रस्तर के पन्नों पर भाव उकेरती हूँ,

गढ़कर  नित नये  विचार,

निज हृदय को समझा लेती हूँ।


भावनाओं में लगाकर गोते ,

मन जब व्यथित हो जाता है,

दोस्त तब बनती छेनी रूपी कलम,

अरमानों के पर लगा लेती हूँ।


इस शिल्पकारी में इतनी है शक्ति,

बिन बोले करती है वार,

जीतकर अंतर्द्वंद से,

पुलकित मन बना लेती हूँ।


अमृत सम है शिल्पकला मेरी,

इसके बिन मैं अधूरी हूँ,

जीवन को मेरे जीवंत बनाती,

पी गरल खुशियां सजा लेती हूँ।


               रीमा सिन्हा (लखनऊ)