"तुम मिल जाते काश... !"

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


भावों को लेकर उड़ा, मिला नहीं आकाश ।

अक्षर अक्षर ढूंढता,  तुम मिल जाते काश ।।


               तेरे मेरे दरमियां !

               बस  बचा  हया !!


शागिर्द बनाकर रखा तुम्हें जीवन रथ का,

जीवन चक्र समझा नहीं, आया नहीं रास ।


             दर्द के  झोंके  बन जा !

             या मेरे झरोखे बन जा !!


हो हमसफ़र जो सिसकियां सुन ले मेरा,

लब खामोश हो जाएं इश्क़ की आभास ।


               आकर हाथ थाम ले ! 

               सिर्फ मिरा ही नाम ले !!


तन्हाइयों की काल कोठरी में रहने वाली,

जीवन में रंग भर दे, ला दे  नया  प्रकाश ।


           वो चल चला सा क्यों है ! 

           ये ज़लज़ला सा क्यों है !!


उजड़े हुए  चमन के   बिखरे हुए  फूल हैं,

लाओ खुशबू की तरह जिंदगी में सुभाष ।


भावों को लेकर उड़ा, मिला नहीं आकाश ।

अक्षर अक्षर ढूंढता,  तुम मिल जाते काश ।।


स्वरचित एवं मौलिक

मनोज शाह 'मानस'

manoj22shah@gmail.com