ह्र्दय को न पाषाण कर
इसमें मानवता का भी
कुछ सम्मान कर।
जो मिट चुका है
उसको मिटने दे,
नवीन आते
ज्ञानधारा के स्रोत का
कुछ सम्मान कर।
भूमंडल की भूतल पर
न किसी का अपमान कर,
अपनों के साथ-साथ
पराएओ के लिए भी
हृदय से सम्मान कर।
आगाज अगाध उड़ते
परिंदों पर तो
सब मान करते हैं
नवीन उड़ते पुलकित
पंखों का भी तू
कुछ सम्मान कर।
राजीव डोगरा
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
rajivdogra1@gmail.com