महिला उत्पीड़न रोकने को उठाए जा रहे ठोस कदम

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क   

समिति न गठित होने पर नियोजक पर लग सकता है 50 हजार का जुर्माना

सहारनपुर। शासकीय, अर्धशासकीय कार्यालयों, निजी संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों, खेलकूद संस्थानों सहित संगठित व असंगठित क्षेत्र के समस्त कार्यालयों आदि में जहां भी 10 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, चाहे वे सभी पुरूष ही क्यों न हों, वहां पर आंतरिक परिवाद समिति (इन्टरनल कम्प्लेंट्स कमेटी) का गठन करना अनिवार्य कर दिया गया है। 

महिला कल्याण विभाग के उपनिदेशक पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि कार्यस्थल पर महिलाओं का लैंगिक उत्पीड़न (निवारण प्रतिशेध और प्रतितोष) अधिनियम 2013 की धारा-4 के अंतर्गत ऐसे सभी संगठन या संस्थान जिनमें 10 से अधिक कर्मचारी हैं, वह आंतरिक शिकायत समिति गठित करने के लिए बाध्य हैं। इसका उद्देश्य महिलाओं को लैंगिक उत्पीड़न सम्बन्धी मामलों में त्वरित और समुचित न्याय दिलाना है। कहा कि समिति का गठन कार्यस्थल पर वरिष्ठ स्तर पर नियोजित महिला की अध्यक्षता में होगा, जिसमें दो सदस्य सम्बन्धित कार्यालय से एवं एक सदस्य गैर सरकारी संगठन से नियोजक द्वारा नामित किये जायेंगे। समिति के कुल सदस्यों में से आधी सदस्य महिलाएं होंगी। 

लैंगिक उत्पीड़न क्या है 

महिला कल्याण विभाग के उपनिदेशक पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि कार्यस्थल पर महिलाओं को उनकी इच्छा के विरूद्ध छूना या छूने की कोशिश करना जो महिला के सामने असहज स्थिति पैदा करने वाली हो, उसे लैंगिक उत्पीड़न के दायरे में माना जा सकता है। शारीरिक या लैंगिक सम्बन्ध बनाने की मांग करना या उम्मीद करना भी लैंगिक उत्पीड़न है। इसके आलावा किसी महिला से कार्य स्थल पर अश्लील बातें करना, अश्लील तस्वीरें, फिल्में या अन्य सामग्री दिखाना भी लैंगिक उत्पीड़न के दायरे में आ सकता है। 

अधिनियम के तहत लैंगिक उत्पीड़न की शिकायत घटना के 90 दिनों के भीतर आंतरिक शिकायत समिति या स्थानीय शिकायत समिति में दर्ज करानी चाहिए। शिकायत लिखित रूप में की जानी चाहिए। यदि किसी कारणवश पीड़िता लिखित रूप में शिकायत करने में सक्षम नहीं है तो समिति के सदस्यों को उनकी मदद करनी चाहिए। यदि शिकायत नियोजक के विरूद्ध है तो वह भी स्थानीय समिति में दर्ज कराई जायेगी। अधिनियम के अनुसार पीडित की पहचान गोपनीय रखी जाना अनिवार्य है।