हम सब बच्चे अनाथ,
सोते हैं फुटपाथो पर।
अम्बर की चादर ओढ़े,
आंखों मे सपने हजार लेकर।।
कोई नही हमारे साथ,
फिर भी मन मे है विश्वास।
पढ़ने की तमन्ना लिए,
करते हम ढाबो पर काम।।
हममें भरा है जोश,
कुछ कर गुजरने का।
फिर भी फोड़ते हम,
ईंट पत्थर सड़कों का।।
है हमारे कंधों पर,
जीवन का एक बोझ।
जब काम नही मिलता,
मांगते भीख मजबूर होकर।।
खो रहा बचपन हमारा,
दर-दर भटकते-भटकते।
अनाथ के साए मे अक्सर,
अपराध में हम लिप्त हो जाते।।
प्रियंका त्रिपाठी 'पांडेय'
प्रयागराज उत्तर प्रदेश