हसरतें पाली थी मैंने

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


हसरतें पाली थी मैंने

कुछ सिसक कर रह गईं। 

कुछ बिछड़ कर रह गईं।

पैगाम मुझको दे गईं, फिर

मिलेंगे,फिर मिलेंगे।


कुछ हसरतों की हसरतें

पूरी हुई,कुछ जिद्दी दाग

बन ठहरी रहीं। कुछ अश्रुओं 

के संग बह गईं। हसरतें पाली 

थी मैंने कुछ तटों पर लग गई। 


कुछ हसरतें आकाश की ऊंचाइयों 

को छू गईं।बस यही धन दौलत और 

शौहरत दे गई। बदले में कुछ मेरे 

मुझसे ले गई। कुछ हसरतें यूं ही 

सिमट कर रह गई ।


हसरतें पाली थी मैंने,दुःख पहनेंगे

कफन,खुशीयों की बारात आये, 

महफूज़ रहे मेरा वतन। सब तरफ   

अमन ही अमन। हसरतों संग

हसरतें पाली थी मैंने।


कुछ पूरी हुई, कुछ पूरी होते-होते 

रह गईं बस वही पैगाम मुझको 

दे गईं, फिर मिलेंगे,फिर मिलेंगे। 


रमा निगम वरिष्ठ साहित्यकार 

ramamedia15@gmail.com