आओ वृक्ष लगाएँ हम

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क  


धूप में  ढूँढे  छाँव  सब,

शहर हो  या  गाँव सब।

छाँव  कहाँ से  पाओगे?

जब वृक्ष नहीं लगाओगे।


देकर  विकास  का  वास्ता,

काटे वन आहिस्ता-आहिस्ता।

पशु  -  पक्षी   हुए    बेघर,

बदलने लगे मौसम के तेवर।


वायु  भी  हुई  प्रदूषित  यहाँ

भूमिगत जल का हुआ क्षरण।

रोग   व्याधियाँ  बढ़ने   लगी,

कष्टसाध्य  हो  रहा  जीवन।


वसुधा का सर्वस्व हमारे हवाले

आओ  हम सब  इन्हें सम्भालें।

करें  हम   इनका   सदुपयोग,

बनें हम सब  इनके  रखवाले।


वसुधा का श्रृंगार करें हम

इसे माँ सा प्यार करें हम।

हरी-भरी हो वसुधा हमारी,

वृक्ष  लगाएँ  बारी - बारी।


         सोनल सिंह"सोनू"

       कोलिहापुरी दुर्ग छ ग

      मो नं 9617736068