तलाश-ए-सुकूँ

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


तलाश ए सुकूँ है इक अय्याम से है।

नश्तर चुभ रहा है मंजर-ए-औहाम से है।


खलिस बने मुख़्तलिफ़ अल्फ़ाज़ तेरे,

चैन मिलता है बस इक जाम से है।


भयावह लगती है रात की तन्हाइयां,

सुबह का इंतज़ार हमको शाम से है।


हमने तुम्हें अपना ख़ुदा बनाया था,

बेवफ़ा तुझे मतलब बस काम से है।


                 रीमा सिन्हा

            लखनऊ-उत्तर प्रदेश