(वर्तमान)

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क  


पुरे जोश और आधी रफ़्तार से

दौड़ रही है जिंदगी  

मयखानों में लाल हुई आंखें मदिरा से 

लील गयी घर-बार जिंदगी 


कहीं कंपकपाती सर्दी से 

सड़क किनारे ठिठुरती  

और कहीं घरों में चाय की चुस्कियों और 

पकवान उड़ाती जिंदगी 


मृत्यु शैया पर अनभिज्ञ झूलती, 

सरकारी अस्पतालों में 

बाद मौत के बिल चुकाती 

वेंटिलेटर पर आराम करती जिंदगी 


खून-खराबा,शोर शराबा 

साम्प्रदायिकता की तलवार घिसकर 

राजनीति की चमक में 

इंसानियत भूलती जिंदगी 


अख़बारों को पढ़कर 

नुक्कड़ों पर चर्चा करती 

मूक अनुमति देती जिंदगी  


आश्वासनों से उम्मीद जगाती

वर्षों तक सोती,चुनावों में जाग कर 

फिर से आशाओं की भूल-भुलैया में 

छली जाती जिंदगी 


वंदना जैन 

मुंबई