बाजार में खड़ी थी मैं,एक नन्ही बच्ची वहाँ आ गई।
माँ, माँ कहकर अनायास ही मुझसे वह लिपट गई।।
गुस्साई पल भर को मैं, मुसीबत क्या पल्ले पड़ गई?
ब्याह तो हुयी ना है मेरी, माँ कैसे इसकी बन गई?
देखकर उसका मासूम-सा मुखड़ा,मैं सारा गुस्सा भूल गई।
मुस्कुरायी जब उसे देख मैं, वह बाँहों में आकर झूल गई।।
अंतस की छिपी बैठी ममता, आँखों से मेरे बह गई।
माँ की परिभाषा वो बच्ची, आँखों आँखों में कह गई।।
जाने किसकी बच्ची है यह, पल भर को मेरी बन गई।
बिना किसी बंधन के भी, मैं माँ उसकी बन गई।।
युवा लेखिका एवं साहित्यकार
शिखा गोस्वामी "निहारिका"
मुंगेली, छत्तीसगढ़