भावनात्मक कार्ड

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

ठहरिये,चिन्तन किजिये।क्या आप किसी के साथ भावनात्मक कार्ड ( इमोशनल कार्ड) खेल रहे हैं,या खेलने जा रहे हैं अथवा आपके साथ कोई पहली बार,कई बार औैर लगातार इस कार्ड का स्तैमाल करके आपको मानसिक आघात के साथ अन्य तरह की हानी भी पहुंचा रहा है। तब इस भावनात्मक कार्ड से खेले जाने वाले खेल को ना तो किसी के साथ खेलें और ना ही किसी दूसरे को अपने साथ खेलने दें। जब कोई व्यक्ति पहली बार किसी के साथ भावनात्मक या इमोशनल कार्ड खेलता है, तब यदि उसे पहली बार में  ही सफलता प्राप्त हो जाती है तो वह अक्सर इसे जारी रखता है और अवसर के अनुसार इसे भुनाता रहता है। अक्सर देखा गया है कि ऐेसे लोग अपने स्वार्थ को फलीभूत करने के लिये इस तरह के कार्ड का उपयोग कर पीड़ित पक्ष को मानसिक,शारीरिक और आर्थिक चोट पहुंचाते रहते है। पीड़ित पक्ष या व्यक्ति जो इस तरह की यंत्रणा से गुजर रहा होता है या गुजर चुका होता है उसे मानसिक रूप से सामान्य होने में काफी समय लग जाता है। और जब वह सामान्य होने लगता है तब कई बार फिर से पीड़ित व्यक्ति के साथ भावनात्मक कार्ड वाला खेल,  खेल लिया जाता है। इस कार्ड को कभी एक व्यक्ति आपके साथ खेलता है तो कभी दो लोग मिलकर तो कभी दो से अधिक लोग। यहां हम कुछ उदाहरणों के माध्यम से इस भावनात्मक कार्ड के खेल को समझेंगे। ताकि आपके सामने जब भी ऐसी समस्या आये तब आप उस समस्या को समझ कर उसका हल निकाल सकें और अपना अवांछित उपयोग होने से रोक सकें। उदाहरण देने के पूर्व मैं आपसे एक बात और कहना चाहती हूं। यह भावनात्मक कार्ड घर परिवार,मित्र,रिश्तेदार,कार्यालय या कभी - कभी अनजान व्यक्ति भी अपने छोटे - बड़े किसी भी फायदे के लिये स्तैमाल कर सकता है। तो देर किस बात की है चलिये चलते हैं उदाहरण नम्बर एक की तरफ। परिवार में सास या ससुर बीमार है अब उनकी सेवा या तो बेटा बहू मिलकर करें अथवा उन दोनों में से कोई एक करे। जिस समय ससुराल में कोई व्यक्ति बिमार हुआ नहीं की पत्नी के मायके में भी उसके माता-पिता अथवा परिवार का कोई सदस्य बिमार हो जायेगा। यहां पत्नी भावनात्मक कार्ड खेल रही है। वह अपने सास-ससुर अथवा अपने ससुराल में बीमार व्यक्ति की सेवा करना नहीं चाहती है। इसलिये उसके मायके पक्ष में उन्हीं दिनों उसके पिता- माता या अन्य व्यक्ति बीमार हो जाता है। उदाहरण नम्बर दो की तरफ चलते हैं। पति के अथवा पत्नी के भाई बहन या किसी रिश्तेदार को आर्थिक सहायता की आवश्यकता पड़ती है, तब तुरंत ही दूसरा पक्ष भी भावनात्मक कार्ड खेलते हुए कोई ना कोई कारण या जरूरत बता कर आपको मानसिक शारिरिक या आर्थिक आघात पहुंचा देता है। अर्थात् या तो दोनों तरफ से आघात झेलो या जरूरत मंद की मदद मत करो। जब कोई इस तरह का कार्ड चला रहा होता है तब तर्क सहित उस बात को समय रहते खारिज किया जाना चाहिए। 

 हर बार कोई व्यक्ति आपके साथ भावनात्मक कार्ड खेल रहा हो यह जरूरी नहीं है, हो सकता है वास्तव में जब आपकी समस्या हो तब उसे भी समस्या हो। इसलिये जरूरी है की जो बात हो रही है उसकी पूरी तस्दीक की जाये,तभी आप किसी निर्णय पर पहुंचे। कई बार हमारे घरों में या कार्यालय में काम करने वाला हमारा अधिनस्थ स्टॉफ भी समय-समय पर इमोशनल कार्ड चलाने से नहीं चूकते हैं। ऐसे लोग अक्सर तरह तरह के बहाने बना कर कभी काम से छुट्टी तो कभी आर्थिक या अन्य तरह की मदद के बहाने इस कार्ड का उपयोग कर हमें विभिन्न तरह से क्षति पहुंचाते रहते हैं। और हम भावनाओं में बह कर इमोशनल कार्ड का शिकार होते रहते हैं। यही कार्ड कई बार घर में बच्चे भी माता पिता के साथ स्तैमाल कर लेते हैं। और पुत्र या पुत्री मोह में माता-पिता इस इमोशनल कार्ड को समझ ही नहीं पाते हैं। यह कुछ उदाहरण हैं जिनके माध्यम से भावनात्मक खेल या इमोशनल गेम को बड़ी आसानी से समझा जा सकता है। जरूरी और गैर जरूरी के अंतर को समझ कर तनावरहित, शांतिपूर्ण जीवन की राह को आसान बनाया जा सकता है। ना तो इमोशनल कार्ड का स्तैमाल स्वयं किजिये और ना ही अपने लिये अनावश्यक रूप से किसी को करने दिजिये। 

रमा निगम वरिष्ठ साहित्यकार 

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