युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
सुन्दर नभचर, करते विचरण।
मानव ने सोचा, पिंजरा बुना।
पंछी है बंद, जन आनंद।
बनाया धर्म, स्वयं ही बंद।
स्वयं निर्मित, कैसे बंधित।
मानव न बांधे,कोई भी धर्म।
स्व निर्मित धर्म का,पालन करो सदा।
बंध कर तुम, तजो न दया।
धर्म की सीख, दीन पर पसीज।
बनो सहायक, जो हैँ असहाय।
आँसू पोंछकर, इंसान बनकर।
फहरा दो तुम, धर्म पताका।
धर्म उसी का, जो इंसान है।
धर्म नहीं पहचान, धर्म एक पथ।
सकारात्मक सोचें, न किसी पर थोपें।
अच्छाई को मानें, सब धर्म यही कहें।
पूनम पाठक "बदायूँ "
बदायूँ उ. प्र.