वो औरत...

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

थके पांव.. 

मुरझाया चेहरा.. 

सूखे होंठ.. 

आंखों में छुपा.. 

वह दर्द गहरा.. 

फिर भी मुस्कुराती है.. 

चल रही है.. 

बढ रही है l

 बंधी मुट्ठी में.. 

दो - चार पैसे लिए.. 

धुंधली आँखों से.. 

इस दुनिया को.. 

बस कुछ यूं ही निहारती है l

 साड़ी की सिलवटें देखती.. 

उन्हें ठीक करती.. 

आंचल के कोर को.. 

कंधे पर टिका.. 

चारों ओर घूरती नजरों से.. 

खुद को संभालती..  

 असहज महसूस करती.. 

पर अपनी भी.. 

एक जगह बनाती है l

भय का मानचित्र.. 

चेहरे पर उभरता है कई बार.. 

उसे झूठी हंसी के पीछे छुपाती... .. 

तलाशती है.. 

 पुकारती है... मन से.. 

 पर कोई सुन नहीं सकता.. 

कोई देख नहीं सकता.. 

हंसते हैं सब.. 

उसके चेहरे के पीछे छिपे.... 

भय को भांपना चाहते हैं....

खैर... 

वह बढ़ रही है.. 

चल रही है... 

थक रही है.. 

पर रूकती नहीं है l

जलती है राख बन.. 

फिर अंकुरित होती ... 

पल्लवित होती.. 

खेलती है.. 

खुशियां बिखेरती.. 

खुद से ज्यादा... 

औरों के लिए सोचती.. 

जूझती है.. 

हर परिस्थिति से.. 

कभी आसमान से बातें करती.. 

सपनों में रंग भरती हुई.. 

 थिरकती.. 

गुनगुनाती.. 

सारी सृष्टि में समाहित.. 

जीवन के हर क्षेत्र में.. 

अपने आप को निखारती.. 

बढ़ रही है.. 

हां.. बढ़ रही है..... वह औरत l

डॉ. सोनी, मुजफ्फरपुर