"कहां चले गए..."

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क   


करके बेबस ऐसी हालात कहां चले गए ।

लेकर सिसकते  जज़्बात कहां चले गए ।।


करके मजबूर  कहकर मनहूस  इस तरह,

सुना ना कुछ भी मेरी बात कहां चले गए ।


किस जुर्म की ऐसी सजा हमें मिल रही है,

जिंदगी  पर  ऐसी  आघात कहां चले गए ।


क्या कसूर है मेरा ए दुनिया वालों बताओ,

छोड़कर  यूं ही  मेरा साथ  कहां चले गए ।


हम भी इसी धरती पर जन्मे हुए इंसान है,

संबंध हीन करके प्रतिघात कहां चले गए ।


मुड़कर  एक बार  देख लो  ज़रा  हमें  भी,

कैसी हो गई हमारी हालात कहां चले गए ।


करके बेबस ऐसी हालात कहां चले गए ।

लेकर सिसकते  जज़्बात कहां चले गए ।।


स्वरचित एवं मौलिक

मनोज शाह 'मानस'

manoj22shah@gmail.com