करके बेबस ऐसी हालात कहां चले गए ।
लेकर सिसकते जज़्बात कहां चले गए ।।
करके मजबूर कहकर मनहूस इस तरह,
सुना ना कुछ भी मेरी बात कहां चले गए ।
किस जुर्म की ऐसी सजा हमें मिल रही है,
जिंदगी पर ऐसी आघात कहां चले गए ।
क्या कसूर है मेरा ए दुनिया वालों बताओ,
छोड़कर यूं ही मेरा साथ कहां चले गए ।
हम भी इसी धरती पर जन्मे हुए इंसान है,
संबंध हीन करके प्रतिघात कहां चले गए ।
मुड़कर एक बार देख लो ज़रा हमें भी,
कैसी हो गई हमारी हालात कहां चले गए ।
करके बेबस ऐसी हालात कहां चले गए ।
लेकर सिसकते जज़्बात कहां चले गए ।।
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज शाह 'मानस'
manoj22shah@gmail.com