मिलना चाहती हूं

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क  


मन के अंधेरो को समेटकर 

सरयू में बहा देना चाहती हूँ

एक आख़री बार ही सही 

मैं खुद से मुलाकात 

करना चाहती हूँ

रास्तों की भटक में मैं 

श्रीराम से मिलना चाहती हूँ

उन्ही रास्तों में अहिल्या बन

पाषाण बनना चाहती हूँ

कौन हूं,क्यू हूँ,किसलिए हूँ इस

रहस्य को जानना चाहती हूँ

मैं आकाशगंगा में विचरण कर

तारों को चुनना चाहती हूँ

रक्तरंथजित रिश्तों की धरती पर

मैं प्रेम को रोपना चाहती हूँ

इन्ही पारिजात पुष्पस्वप्न में मैं

विलीन होना चाहती हूँ


डिम्पल राकेश तिवारी

अयोध्या उत्तर प्रदेश