पोकलैंड मशीनों से खुलेआम माफिया कर रहे बालू का अवैध खनन

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

नदियों का सीना चीर बीच जलधारा से निकाली जा रही बालू

अवैध कमाई के चक्कर में खनिज विभाग नहीं कर रहा कार्यवाही

 चित्रकूट। जिले में संचालित बालू खदानों में खुलेआम नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। खदान संचालक पोकलैंड मशीनों के जरिए नदियों का सीना चीर कर बालू निकाल रहे हैं । जिससे नदियों का अस्तित्व खतरे में पड़ रहा है। अवैध कमाई के चक्कर में दिन रात भारी भरकम मशीनें बालू घाटों में गरज रही है। जिम्मेदार अधिकारी इस ओर अपनी आंखें मूंदे हुए हैं। 

जब किसी अखबार में अवैध खनन की खबर छपती है तो अधिकारी उन्ही वाहनों को निशाना बनाते हैं जिनसे उन्हें अवैध कमाई का हिस्सा नहीं मिलता है। यदि इसी तरह एनजीटी के नियमों की धज्जियां उड़ाई गई तो नदियों के हालात बद से बदतर होंगे। चित्रकूट जिले में लगभग आधा दर्जन से भी अधिक बालू की खदानें चल रही है। जो खदाने संचालित हैं उनमें तीर धुमाई, धौरहरा, तीर मऊ, ओरा, गुरगौला, बियावल व अन्य है। इन सभी बालू घाटों में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण अधिनियम 2010 की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

एनजीटी के नियमों के मुताबिक कोई भी बालू ठेकेदार किसी भी नदी की जलधारा से बालू का खनन नहीं कर सकता है। यदि कोई भी ठेकेदार या पट्टा धारक नियमों का उल्लंघन करते पाया गया तो उसके खिलाफ कठोर कार्यवाही के साथ सजा का प्राविधान है। लेकिन पट्टा धारक खनिज अधिकारी और पुलिस प्रशासन से सांठगांठ कर बालू का अवैध खनन कर रहे हैं। नदी की जलधारा से बालू का खनन करने के लिए ठेकेदार बोरियों में मिट्टी भरकर नदी की जलधारा को रोकते हैं और इसके बाद पोकलैंड मशीनों को नदी के बीच जलधारा में उतार कर बालू निकाली जाती है।

 इसके बाद जेसीबी के जरिए बालू घाट के किनारे तक पहुंचाई जाती ताकि किसी भी उच्च अधिकारी के अचानक आने पर यह साबित किया जा सके कि बालू का खनन नदी की जलधारा से नहीं किया जाता है। जिस जगह से बालू निकाली जाती है उस जगह पर कई फीट के बड़े गड्ढे हो जाते हैं। बालू निकालने के बाद तत्काल उसे मिट्टी के जरिए गड्ढे भर दिए जाते हैं। प्रत्येक खदानों में बालू माफिया अपने असलहा धारी गुर्गों को तैनात रखते हैं जो बालूघाट व आसपास चहलकदमी करते रहते हैं। गांव का कोई भी किसान व अन्य व्यक्ति अवैध खनन पर आवाज न उठा सके इसके लिए असलहों के दम पर दबाव बनाया जाता है। 

पट्टा धारक जहां पर बालू का खनन कराता है उसके इर्द-गिर्द कोई भी परिंदा पर नहीं मार सकता ऐसी व्यवस्था की जाती है। इस दौरान यदि कोई भी व्यक्ति अचानक पहुंच भी गया तो ठेकेदार के गुर्गे उसके साथ मारपीट भी करते हैं। इतना ही नहीं बालू माफिया तय सीमा से अधिक क्षेत्र में अवैध खनन कर राजस्व को भारी क्षति पहुंचा रहे हैं। पट्टे का सीमांकन न होने की वजह से बालू खनन का पूरा फायदा उठाया जाता है। बालू माफियाओं के अवैध खनन के खेल में खनिज विभाग पूरी तरह से अवैध कमाई के चक्कर में संलिप्त है।

 प्रत्येक घाट से अवैध खनन का एक मोटा हिस्सा खनिज अधिकारी और अन्य अधिकारियों को जाता है। यही वजह है कि इन बालू खदानों पर छापामार कार्यवाही नहीं की जाती है। बालू खदानों से अवैध कमाई का बड़ा हिस्सा खनिज अधिकारी और उच्चाधिकारियों तक पहुंचाए जाने का ऑडियो भी कई बार वायरल हुआ है। जिले की सबसे चर्चित रही चांदी घाट बालू खदान के ठेकेदार के मुनीम के वायरल ऑडियो में खुलेआम अधिकारियों को माहवारी रकम पहुंचाने की बात कही गई थी हलाकि तत्कालीन जिलाधिकारी शेषमणि पांडे के त्वरित एक्शन के बाद हड़कंप मच गया था और बाद में इस मामले को रफा-दफा करा दिया गया था। 

जिले के कई समाजसेवियों और नदी संरक्षण अभियान चलाने वाले लोगों ने जिलाधिकारी व शासन के आला अधिकारियों से नदियों का अस्तित्व बचाए रखने के लिए नदी की जलधारा से किए जा रहे अवैध खनन को तत्काल बंद कराए जाने और सीमांकन से अधिक क्षेत्र में अवैध खनन पर तत्काल रोक लगाए जाने की मांग की है।