सुख में छिपा दुख

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क  

मास्टर रतनलाल लगभग अठावन वर्ष के थे। तीन महीने में रिटायर होने वाले थे। पिछले कुछ दिनों से समाचार पत्रों और टी.वी. में रिटायरमेंट बढ़ाने संबंधी खबरें बड़ी तेजी से तूल पकड़ रही थीं। पाठशाला में मोबाइल पर विधानसभा की कार्यवाही बड़े ध्यान से देख रहे थे। मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि राज्य कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु सीमा 58 वर्ष से बढ़ाकर 60 की जा रही है। खबर सुनते ही जल्दी से मिठाई मंगवाई और अपने साथी अध्यापकों में बाँट दी। उनकी खुशी का ठिकाना न था।

शाम को घर लौटने पर पत्नी को खुशी का समाचार सुनाने वाले ही थे कि पत्नी बोल उठी – “सुनते हो!  सरकार ने जैसे ही रिटायरमेंट की आयु बढ़ाई उधर फलाँ गाँव में एक बेरोजगार ने घासलेट का तेल डालकर खुद को जला लिया। मरने से पहले वह कह रहा था इतने दिनों से वह रोजगार की भर्ती का इंतजार कर रहा था। अब रिटायरमेंट की आयु सीमा बढ़ा देने से हम जैसों को खाक नौकरी मिलेगी। मोटी-मोटी किताबें पढ़कर आँखों पर ऐनक और बाल सफेद हो गए। अब माँ-बाप बच्चों को पढाने से डरने लगे हैं। कहीं उनका बच्चा भी बेरोजगार न हो जाएँ।“ इतना कहते-कहते पत्नी का गला रूँध गया।

मास्टर रतनलाल ने पत्नी को समझाते हुए कहा- “छोड़ो भी यह सब बेकार की बातें। यह तो राज-काज है। चलता ही रहता है। ऐसी घटनाएँ आए दिन होती रहती हैं। सबके लिए दुखी होना शुरु कर दिया तो खाक जी पाओगी। अब पत्थर दिलों का जमाना है। पसीजना छोड़ो। ऐसी बातों को हल्के से लो और खुशी-खुशी जिओ। मेरी रिटायरमेंट आयु सीमा दो साल बढ़ा दी गयी है। खुशी मनाओ। यह मिठाई खाओ और बच्चों को खिलाओ। खुशी के समाचार में यह कहाँ का रोना-धोना लेकर बैठ गई।“ इतना कहते हुए मास्टर जी पत्नी को मिठाई खिलाने लगे।        

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त, मो. नं. 73 8657 8657