समंदर की लहरें बुला रही है
खूबसूरत चांदनी रात को
जमीं आसमां की जहां मिलन होती है
उस छितिज को उस कायनात को
चांद भी दूर से इशारा कर दिया है
नीले समंदर को सुनहरा कर दिया है ।।
"खुशबू छलकते ही..."
खुशबू छलकते ही... गुलाब बन गए
सांसे महकते ही...... ख़्वाब बन गए
लरजते पंखुड़ियां नशीली होंठ जैसी
नशीली होंठ लरजते पंखुड़ियों जैसी
जब इन होठों से.. पंखुड़ियां टकराई
जमाने की बेहतरीन.. शराब बन गए
"पलकें झुका ली है..."
शरमाकर जो
पलकें झुका ली है
जहां मोहब्बत जवां होती है...!
सजदे में
परवाना आया है
वाजिब भी है आना
जहां शमा जवां होती है...!!
"उर्वशी हो या अप्सरा..."
इंद्र ने भेजा हुआ
उर्वशी हो या अप्सरा...,
आकाश से उतारी गई
खूबसूरत हो सितारा...।
पूर्णिमा की पूनम हो या
चांदनी रात की चंद्रमा...,
व्याकुल है लोग तुम्हें
देखने के लिए दुनिया सारा ।।
"इन्हीं किताबों में..."
कुछ लम्हें सपने बनकर
बिखर गए ख़्वाबों में
कुछ लम्हे खुशबू बनकर
बिखर गए गुलाबों में
मैं तलाशता रहा जिंदगी के
हसीन लम्हे इन्हीं किताबों में ।।
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज शाह 'मानस'
manoj22shah@gmail.com