अपनी व्यथा किसे सुनाएं

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क   


अपनी व्यथा किसे सुनाऊं बात समझ ना आई 

दुखों का पहाड़ टूटा घर में वीरानी छाई 

ऊपर वाले ने बहुत जल्दबाजी दिखाई 

मैं कैसे जी पाऊंगा उसे दी थी दुहाई 


माता पिता बहन की यादें गहराई 

दिल दिमाग जीवन में अंधयारी छाई 

माता पिता बहन से बीते पलों की याद सताई 

ऊपर चले गए मेरी आंखें ढूंढ ना पाई 


देखा उनके रूम को तो आंखें भर आई 

बेड वैसे ही हैं पर उन पर वीरानी छाई 

कैसे झटकूं बेडशीट को सिलवट भी ना आई 

अपनी व्यथा किसे सुनाऊं बात समझ में ना आई 


माता पिता बहन बिना जीवन जीने की 

कला किसी ने भी नहीं सिखाई 

दुखी परेशान गम में डूबा हूं भाई 

दुआ करो मेरे लिए यही है मेरी दुहाई


लेखक- कर विशेषज्ञ, साहित्यकार, कानून लेखक, चिंतक, कवि, एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र