अस्पताल में चीखती-चिल्लाती,
जिन्दगियां चिकित्सक के स्पर्श
मात्र से आशान्वित हो उठती हैं।
उनकी आखों की बुझती ज्योति
फिर टिमटिमा उठती है।
परिजन भी उत्सुक हो उठते हैं,
जानने के लिए अब
खतरा टल गया है।
चिकित्सक भी बहुत कठिन दौर से
गुजरता है मरीज की आंखे पढ़कर,
कंपकंपाते होठों की
फरियाद सुनकर,
ठंडे हो रहे हाथों की
कसती पकड़ से,
फिर भी आस
बंधाता है मुस्कुराकर।
कितनी मुश्किल होती है वह घड़ी
जब जानते हुए भी चमत्कार की
आशा में मन भटकता है।
कितनी शेष इच्छाएं लेकर,
मानव आखिरी छण तक
शाश्वत सत्य नहीं अपनाता।
अनगिनत स्वप्नों को पाले वह,
अपनों से दूर नहीं जाना चाहता।
जब वह इस नश्वर संसार से
विदा लेता है तो वह सारी इच्छाएं,
सजीले स्वप्न,सगे-सम्बन्धी सबसे
परे,अकेले ही प्रस्थान करता है।
अनुपम चतुर्वेदी,सन्त कबीर नगर