॥ बसंत को आ जाने दो ॥

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क  


प्रेम की जज्बात को बहक जाने दो

फिजां को प्यार के रंग में सज जाने दो

चमन की कलियों को खिल खिल जाने दो

जरा ॠतुराज बसंत को आ जाने     दो


अपनी जुल्फों की आगोश में छुप जाने दो

आँचल की ठंडी छाँव में सो जाने।      दो

किसी को भी इस ओर कभी ना  आने  दो

जरा नभ को बादल की चादर में छिप जाने दो


काजल बनअपनी पलकों में बस जाने दो

माथे पर लाल बिन्दी बन संवर  जाने    दो

हमको तेरे प्यार में पागल प्रेमी बन जाने दो

जरा मधुकर को अपने करीब आ जाने   दो


सावन में बरखा को रिमझिम बरस जाने दो

मोहब्बत की सैलाब में हमें बह जाने     दो

शहनाई मेहबूब के ऑगान में बज जाने  दो

जरा प्रेमिका को मेरी दुल्हन तो बन जाने दो


दिन दुनियाँ को अब तो बदल जाने दो

फूलों की डोली को नगर में सज जाने दो

मेरी दिलबर को मेरे दिल में उतर जाने दो

जरा मेरी बारात को ससुराल तक जाने दो


हवा में भंग को घुल कर बिखर जाने दो

हर जवां दिल को मदहोश तो हो जाने दो

सूरज को पूरब में उदय हो तो जाने दो

जग से अंधकार को मिट तो जाने  दो


उदय किशोर साह

मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार

9546115088