छठी मातु वर दे हमें,कर सबका कल्याण।
हर परिजन सुखमय रहे,रहें सुरक्षित प्राण।।
सूर्यदेव तुम दिव्य हो,हर लेते हर शाप।
देना नित गतिशीलता,परे हटें संताप।।
हे मैया ! तुम मांगलिक,हरदम दयानिधान।
फलीभूत कर सुख सदा,रहें सुरक्षित आन।।
सूर्यदेव का पर्व यह,बाँट रहा है ताप।
हारेगी हर वेदना,और व्यथा,संताप।।
अस्ताचल से रवि-उदय,व्रत,पूजा,उपवास।
छठमाई आशीष दें, दिनकर साधें आस।।
रोग,शोक से मुक्त हो,बने नवल यह देह।
सूर्यदेव देते सतत,नर-नारी को नेह।।
आज उपासक पा रहा,नए-नए वरदान।
छठ माई ने ले लिया,श्रद्धा का संज्ञान।।
जलस्रोतों में भीड़ है,भक्ति-भाव परवान।
देवों को पहुँचा रहे,पूजा का सामान।।
छठ माई की है दया,सूर्यदेव का मान।
पूर्ण करो हे देव रवि!,भक्तों के अरमान।।
समय बड़ा प्रतिकूल है,माई कर अनुकूल।
देव भास्कर ! आज तुम,परे करो सब शूल।।
-प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे