"देह विक्रय एक मजबूरी या शानो शौकत भरी ज़िंदगी की लालसा"

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

आज एक विषय पर बहुत चिंतन किया जीवन में हर समस्या के दो समाधान होते है "अच्छी राह चुनना ओर दलदल में धसना" स्त्रीयाँ या लड़कीयाँ देह विक्रय का रास्ता खुद चुनती है या धकेल दिया जाता है ये सोचनिय मुद्दा है। आख़िर क्यूँ हर बड़े शहर में ये धंधा दीमक की तरह फैल रहा है। देश का सबसे बड़ा रेडलाइट एरिया कोलकाता का सोनागाची इलाका है, दूसरे नंबर पर मुंबई का कमाटीपुरा, फिर दिल्‍ली का जीबी रोड, आगरा का कश्‍मीरी मार्केट, ग्‍वालियर का रेशमपुरा, पुणे का बुधवर पेट हैं। इन स्‍थानों पर लाखों लड़कियां हर रोज बिस्‍तर पर परोसी जाती हैं।

वेश्यावृत्ति को अपनाने के मूलभूत कारण कुछ इस प्रकार माने जाते हैं जिन कारण से ये स्त्रियां वेश्यावृत्ति का रास्त चुन लेती है। उसमें सबसे बड़ा आर्थिक कारण होता है। अनेक स्त्रियां अपनी एवं आश्रितों की भूख की ज्वाला शांत करने के लिए विवश होकर इस वृत्ति को अपनाती है। जीविकोपार्जन के अन्य साधनों के अभाव तथा अन्य कार्यों के अत्यंत श्रम साध्य एवं अल्वैतनिक होने के कारण वेश्यावृत्ति की ओर आकर्षित होती है। 

या बहुत बार हम सुनते है की परिवार के ही किसी सदस्य ने बेच दिया हो या तो एसी मजबूरी आन पड़ी हो की इस गंदगी भरे रास्ते को चुनने के सिवाय कोई चारा ही ना हो। एसी स्थिति में चलो मान लेते है की इस काम को अपना लिया हो, पर क्या ओर को राह नहीं होती ? जो सीधे कदम कोठे की दहलीज़ पर रुक जाते है।

इस व्यवसाय में हिंसा भी चरम पर होती है दलालों द्वारा या ऐसे कोठे को चलाने वाली मुखिया के द्वारा पीटा जाता है, दमन किया जाता है और मानसिक रुप से अपाहिज लड़कीयाँ डर के मारे विद्रोह नहीं करती और अपना लेती है नर्कागार को।

पर समाज में काम की कोई कमी नहीं आप अपने हुनर और हैसियत के मुताबिक जो काम करना चाहो थोड़ी मसक्कत के बाद मिल ही जाएगा तो क्यूँ कोई जानबूझकर उस गंदगी को अपनाती है ये सवाल है।

इस पेशे में अच्छे घर की लड़कीयों को जाते हुए देखा है महज शानो शौकत की ज़िंदगी जीने के ख़्वाब पूरे करने शायद पैसा कमाने का बहुत ही आसान ज़रिया होता है। काॅल गर्ल को सुना है एक रात के हज़ारों रुपयों में तोलने वालों की कमी नहीं। माना की पैसा सबकुछ है पर गुज़र बसर करने के लिए इंसान को चाहिए कितने ये आजीविका नहीं शौक़ पालने के फ़ितूर हुए।

तो दूसरी ओर देखा जाए तो गरीबी और निराशा, वेश्‍यावृत्ति को और भी हवा देती है। लड़कीयों के शोषण और वेश्‍यावृत्ति का सीधा-सीधा संबंध, टूटते परिवार, भुखमरी और निराशा भी हो सकता है। उनको लगता है की ज़िंदा रहने के लिए उनके पास वेश्‍यावृत्ति के अलावा कोई चारा नहीं।

क्यूँ सरकार, कोई संस्था, या आम इंसान इस विकट समस्या के बारे में नहीं सोचता देश के हर छोटे बड़े मुद्दों पर इन सबकी बाज नज़र होती है पर ये मुद्दा तो ज्वलन्त है कोई तो आगे आए इसका समाधान ढूँढने। कितनी मासूम इस नर्कागार में झुलस रही होगी कोई पाक साफ़ दुपट्टा उनके लिए भी बना है क्या ? जो इनके जलते बदन के ज़ख्मो पर नमी की परत बिछाए। 

वैसे इस आग को बुझाना नामुमकिन है इतनी बड़ी आबादी को चपेट में ले रखा है की कहाँ से शुरू करें। फिर भी एक कोशिश तो होनी चाहिए मेरे ख़याल से इस पेशे में लगीं महिलाओं को व्यवसायिक प्रशिक्षण देना चाहिए, और उनके लिए रोजगार के अवसर पैदा किए जाने चाहिए। तो शायद जो मजबूरी में इस दलदल में फंसी हो उसे इज्जत भरी ज़िंदगी जीने का मौका मिलें।

भावना ठाकर 'भावु' (बेंगुलूरु, कर्नाटक)