लेखनी को मैं अगर तलबार कर लूँ

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

सोचता हूँ गल्तियाँ स्वीकार कर लूँ ।

भूल कर शिकवे गिले बस प्यार कर लूँ ।।

कीमती हर एक लम्हा जानता हूँ

क्यों भला मैं जिंदगी बेकार कर लूँ।

नफ़रतों से दिल कभी मिलते नहीं हैं

दिल में ले पाकीज़गी दीदार कर लूँ ।

कर सकूँगा मैं बयाँ बिल्कुल हक़ीक़त

लेखनी को मैं अगर तलबार कर लूं ।

छीनने से यह मुहब्बत ना मिलेगी

क्यों किसी से बेबजह तकरार कर लूँ ?

जिंदगी बीती सदा फुटपात पर ही

 महल के मैं स्वप्न क्यों साकार कर लूँ ।


       ■ श्याम सुंदर श्रीवास्तव 'कोमल'