रोशनी कितनी भी बेदम हो

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

सिर्फ घर में दीये जलाने से ही

दीपावली नहीं है मना करती

बात सिर्फ दीयों की नहीं है

बात यहाँ रोशनी की भी है

कुछ दीये बाहर जलाके देखो

दूर से रोशनी की रौनक़ देखो

घर में जलाना दीये कर्तव्य है

बाहर दीये जलें इंसानियत है

मत डरो कोई दीये बुझा देगा

सोचो मुझसा दीये जला देगा

वो चाँद बहुत दूर है हम सबसे

और हम चाँद को देखा हैँ करते

कुछ इतना पास से चाँद देखते हैँ

कि चाँद में वे दाग देखा करते हैँ

चाँद पर जो भी धूल फेंकते हैँ

धूल अपने चेहरे पर फेंकते हैँ

कुछ देखते चिराग तले अंधेरा

रफ कॉपी को कब चमकते देखा

अक्सर झुक जाती हैँ डालियां

जिन पर फल फूल ज्यादा लदता

चाँद चिराग चिराग जलाने वाले

खुदका कम परहित करने वाले

दिवाली का हर दीया बताता है

हमारा हमारे भारत से नाता है

खुश्बू वतन की महका करती है

जब दीये की लौ ऊपर उठती है

जलते दीये अंधेरों में  हैँ कहते

दीये जलाने से अँधेरे हैँ मिटते

डरे अपने बेटे को भेजने से वहां

उसका गया मांगी मिठाई यह क्या

अब उसे दवा असर नहीं करती

कोई हाल पूछे जड़ है रोग की

घर में बैठे बलिदानियों से कम

नहीं जो बेटों भेजते सीमा पर

चार कदम क्या बुराई मिटाएंगे

बढ़ें तो शुरुआत एक से पाएंगे

रोशनी कितनी भी बेदम हो पर

अंधेरों को मिटाने का रखती दम

पूनम पाठक बदायूँ

इस्लामनगर उत्तर प्रदेश